: २२: आत्मधर्म: २३६
वगेरेए खूब उत्साहथी बधी व्यवस्था करी हती, तेमज गामना अनेक भाईओए उत्साहथी भाग
लीधो हतो. त्यां आहार करीने गुरुदेव सुरेन्द्रनगर पधार्या हता ने बीजे दिवसे सवारमां जोरावरनगर
पधार्या हता.
जोरावरनगरमां पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव
पू. गुरुदेवना प्रतापे जोरावरनगरमां सुंदर दि. जिनमंदिर लगभग ६प, ००० रूा. ना
खर्चे तैयार थयुं छे, तेमां जिनेन्द्रदेवनी प्रतिष्ठानो पंचकल्याणक महोत्सव उत्साहपूर्वक उजवायो.
प्रथम वैशाख सुद पांचमे प्रतिष्ठा मंडपमां श्री जिनेन्द्रदेवने बिराजमान करीने झंडारोपण थयुं.
झंडारोपण भाईश्री अनुपचंद छगनलाल उदाणीना हस्ते थयुं हतुं तथा भाईश्री मनमोहनदास
छोटालाल गांधीए भगवानने मंडपमां बिराजमान कर्या हता. ते ज दिवसे वीसविहरमान
तीर्थंकरोनुं मंडलविधान शरू थयुं हतुं. वैशाख सुद सातमे पू. गुरुदेव जोरावरनगर पधारतां हाथी
उपर धर्मध्वज सहित भव्य स्वागत थयुं हतुं. स्वागत बाद वीस विहरमान पूजन पूर्ण थईने
अभिषेक थयो हतो. बपोरना प्रवचन पछी जलयात्रा नीकळी हती. सुद आठमनी सवारमां नांदी
विधान तथा ईन्द्रप्रतिष्ठा, आचार्यअनुज्ञा अने ईन्द्रो द्वारा पंचपरमेष्ठी वगेरेनुं पूजन थयुं हतुं.
तेमां सीमंधरादि भगवंतो ऋद्धिधारी मुनिवरो वगेरेनुं पूजन करतां आनंद थतो हतो. रात्रे
कुमारिका बहेनोद्वारा वीरजिनेन्द्रनी स्तुतिपूर्वक पंचकल्याणकना भावद्रश्योनो प्रारंभ थयो हतो.
भगवान महावीरनो जीव पूर्वभवे अच्युत स्वर्गमां बिराजमान छे, तेमना गर्भावतरणने छ
मास बाकी छे त्यारे सौधर्मईन्द्रनी सभामां देवो ते संबंधी चर्चा करे छे, कुबेर रत्न वृष्टिनी आज्ञा
करे छे, कुमारिका देवीओ आवीने त्रिशलामातानी सेवा करे छे, माता १४ मंगल स्वप्नो देखे छे–
ईत्यादि द्रश्यो जोतां सौने आनंद थतो हतो. खरेखर जिनेन्द्रदेव तीर्थंकर परमात्माना पंचकल्याणक
ए जगतनो सौथी महान मंगल अवसर छे. एनां पावन द्रश्यो मुमुक्षुना अंतरमां धर्मभावनानी
उर्मि जगाडे छे. इंदोरना प्रतिष्ठाचार्य पं. श्री नाथुलालजी शास्त्री बधा प्रसंगोना भावो
समजावता हता. वैशाख सुद ९नी सवारमां सिद्धार्थ राजाना दरबारमां त्रिशलादेवीनुं आगमन,
१६ स्वप्न अने तेना फळनुं वर्णन, स्वर्गमां ईन्द्रो अने देवोद्वारा भगवानना अवतारनो महिमा
अने गर्भस्थित तीर्थंकरनुं पूजन, कुमारिका देवीओ द्वारा मातानी सेवा तथा तेमनी साथे चर्चा
वगेरेना भावभीना द्रश्योपूर्वक गर्भकल्याक उत्सव ऊजवायो हतो. आ पंचकल्याणक विधिमां
माता–पिता तरीके श्री पोपटलाल मोहनलाल वोरा तथा सौ रंभारेन हता; अने सौधर्मईन्द्र तथा
शरीईन्द्राणी तरीके श्री अमुलखभाई लालचंद शेठ तथा सौ. कंचनबेन हता. आ उपरांत बीजा
सात ईन्द्रो तथा कुबेरनी स्थापना करवामां आवी हती. रात्रे भजननो कार्यक्रम हतो.
वैशाख सुद दशम ए महावीरप्रभुना केवळज्ञान कल्याणकनो दिवस छे; ए ज दिवसे वीरप्रभुनो
जन्मकल्याणक ऊजवायो. सवारमां सौधर्मेन्द्रनी सभामां तीर्थंकरप्रभुना जन्मोत्सवनी खुशाली थाय छे,
ने ईन्द्र हाथी लईने जन्माभिषेक माटे आवे छे, बीजी तरफ सिद्धार्थ राजाने पुत्ररत्नना जन्मनी वधाई
मळे छे ने त्यां आनंद मंगळनी वधाई गवाय छे, शचीईन्द्राणी बाल तीर्थंकरने तेडीने ईन्द्रने आपे छे,
–वगेरे द्रश्यो आनंदकारी हता. जन्माभिषेकनुं जुलूस घणुं सुशोभित हतुं. मेरु उपर आनंदपूर्वक
जन्माभिषेक थयो. –आ बधाय द्रश्योमां बाल तीर्थंकरप्रभुने देखीने भक्तोने घणी प्रसन्नता थती हती.
चारे कोर आनंद मंगळनुं वातावरण छवायेलुं हतुं. अभिषेक प्रसंगे पू. गुरुदेव पण मेरुपर्वत उपर
पधार्या हता ने प्रसन्नतापूर्वक बालतीर्थंकरने नीहाळता हता. मेरु उपर बालतीर्थंकरनी पासे उभेला
गुरुदेवनुं द्रश्य अनेरुं हतुं. जन्माभिषेक करीने पाछा आव्या बाद