जेठ: २४८९ : २३:
ईन्द्र–ईन्द्राणी वगेरेए भक्तिपूर्वक प्रभुसन्मुख तांडव नृत्य कर्युं हतुं. बपोरे बालतीर्थंकर वीरप्रभुनुं
पारणाझलन ईद्र–ईद्राणी तेमज हजारो भक्तोए घणा भावपूर्वक कर्युं हतुं. गुरुदेव पण ए प्रसंगे
उपस्थित हता. रात्रे बाल्यावस्थामां वीरप्रभुनो वनविहार, ते वखते मोटो सर्प देखवा छतां तेमनी
निर्भयता, राजसभामां अनेक राजाओ द्वारा वीरकुमारने भेट, माता–पिता द्वारा विवाहनो प्रसताव ने
वीरकुमारद्वारा तेनो ईन्कार करीने, जातिस्मरणज्ञान पूर्वक दीक्षानो निर्णय वगेरे द्रश्यो थया हता. बीजे
दिवसे (वै. सु. ११) सवारमां वीरप्रभुना वैराग्यना द्रश्योपूर्वक तपकल्याणक उत्सव उजवायो हतो.
भगवानने वैराग्य थतां लोकां तिकदेवोद्वारा स्तुति अने संबोधन, ईन्द्रोनुं आगमन, तपकल्याणक माटे
वनगमन, त्यां बालब्रह्मचारी वीरप्रभुनी दीक्षा, अने दीक्षावनमां गुरुदेवनुं वेराग्यप्रवचन थयुं हतुं.
भगवानना तपकल्याणकनी भव्य वनयात्रा मुमुक्षुहृदयोमां पण वैराग्यभावनाओ जगाडती हती.
बपोरना प्रवचन पछी अजमेरनी भजनमंडलीद्वारा श्री महावीर मुनिराजनी भक्ति–भजननो कार्यक्रम
हतो. रात्रे मुनिदशामां महावीरप्रभु उपर एक रूद्रदेवद्वारा घोर उपसर्ग अने वीरप्रभुनी अडग धीरता
वगेरेना द्रश्यो तेमज भक्ति थई हती. वै. सुद १२ नी सवारे वर्द्धमान मुनिराजना आहारदाननो
प्रसंग भाईश्री चीमनलाल हिंमतलालने त्यां थयो हतो. आनंदकारी आहारदान प्रसंग देखीने हजारो
भक्तोने घणी ज प्रसन्नता थती हती, ने सौ भक्तिपूर्वक आहारदाननुं अनुमोदन करता हता.
आहारदाननी खुशालीमां श्री चीमनलालभाई तरफती रूा. प००१) जाहेर करवामां आव्या हता,
बीजा अनेक भक्तो तरफथी पण रकमो जाहेर थई हती. बपोरे गुरुदेवना पवित्र हस्तकमलथी १८
जिनबिंबो उपर अंकन्यासविधि थई हती. गुरुदेवना हस्ते जिनदेवनी प्रतिष्ठानुं मंगलद्रश्य देखीने
चारेकोर आनंदमंगळनुं वातावरण फेलाई गयुं हतुं ने पू. बेनश्रीबेन उल्लासथी जिनेन्द्र प्रतिष्ठानु्रं
मंगलगीत गवडावता हता. त्यारबाद थोडीवारमां भगवानना केवळज्ञान कल्याणकनुं द्रश्य थयुं हतुं ने
समवसरणनी रचना तथा ईन्द्रोनुं आगमन थयुं हतुं. समवसरणमां दिव्यध्वनीमां भगवान महावीरे
शुं कह्युं–तेनो सार गुरुदेवे बपोरना प्रवचनमां समजाव्यो हतो.
प्रवचन बाद, ईन्द्रोए समवसरणस्थित महावीर परमात्मानुं पूजन कर्युं हतुं तथा भक्ति
भजननो कार्यक्रम हतो रात्रे पण भजननो कार्यक्रम हतो. वै. सुद १३नी सवारे महावीर प्रभुना
निर्वाण कल्याणकना द्रश्यो थया हता. आ रीते पंचकल्याणक पूर्ण थया हता. पंचकल्याणकना प्रत्येक
द्रश्यो तीर्थंकर प्रभुना जीवननुं स्मरण करावीने धर्मसाधनानी भावनाओ जगाडता हता. अहा, महा
भाग्ये कहान गुरुना प्रतापे वारंवार आवा पंचकल्याणकना पावन द्रश्यो जोवानुं ने ऊजववानुं
सौभाग्य प्राप्त थाय छे. सौथी पहेलां सं. १९९७मां (समवसरण वखते), पछी वींछीया, लाठी,
राजकोट, सोनगढ, पोरबंदर, मोरबी, वांकानेर, लींबडी, मुंबई, जामनगर अने आ जोरावरनगर–
एम अत्यार सुधीमां कुल १३ वखत पंचकल्याणक महोत्सव गुरुदेवनी मंगल छायामां ऊजवाया छे.
जोरावरनगरमां पंचकल्याणक आनंदोल्लासपूर्वक ऊजवाया हता; अहींना भाईश्री अमुलख लालचंद,
अनुपचंद, छगनलाल, चीमनलाल हिंमतलाल, मनमोहनदास छोटालाल गांधी तथा पोपटलाल
मोहनलाल वोरा वगेरे भाईओए घणा उत्साह अने उदारताथी सुंदर व्यवस्था करीने महोत्सव
शोभाव्यो हतो.
वै. सुद तेरसे पंचकल्याणकनी पूर्णता बाद लगभग सवा अगियार वागे जिनमंदिरमां जिनेन्द्र
भगवंतोनी स्थापना, सास्रजीनी स्थापना तथा कळश अने ध्वजारोहण थयुं हतुं. हजारो भक्तोना
हर्षभर्या जयनाद वच्चे गुरुदेवे जिनेन्द्र भगवंतोने वेदी उपर स्थापित कर्या हता. नीचेनी वेदीमां
मूळनायक श्री आदिनाथ प्रभु तथा आसपासमां श्री सीमंधरप्रभु अने पार्श्वनाथप्रभु बिराजे छे,
तेमज श्री महावीरप्रभु तथा शांतिनाथप्रभु