Atmadharma magazine - Ank 236
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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जेठ: २४८९: : प:
... लीजीये... चैतन्य... वधाई...
वैशाख सुद बीजना जन्मोत्सवनी उमंगभरी वधाई पछी
प्रवचनमां गुरुदेवे चैतन्यना आनंदनी अलौकिक वधाई
संभळावी... ए चैतन्यवधाई सांभळतां ज भक्तजनोना हैया
हर्षथी नाची ऊठया... अहीं पण ए मंगलवधाई आपवामां
आवी छे... लीजीये चैतन्य वधाई!
(१) चैतन्यना आनंदनो अनुभव केम थाय ने अनादिनुं अज्ञान केम टळे
तेनी आ वात छे.
(२) चैतन्यभगवान विज्ञानघनस्वरूप छे, रागद्वेषरूप मलिनता तेना
स्वरूपमां नथी.
(३) शांतरसथी भरेला आत्माना अनुभव पासे धर्मात्माने ईन्द्रना
ईन्द्रासन पण तुच्छ तरणां जेवां लागे छे.
(४) चैतन्यमां आनंद भयो छे तेमांथी ज स्वसन्मुखतावडे ते प्राप्त थाय छे.
(प) पोतामां ज्ञानआनंद भर्यो छे पण अज्ञानथी ते पोतानुं स्वरूप भूली
गयो छे.
(६) अहीं ते अज्ञान टळे ने सम्यक् आत्मअनुभव थाय–एवी अपूर्व वात
छे.
(७) भाई, तुं तने जाण. पोते पोताने जाणे तो अपूर्व शांति प्रगटे.
(८) चैतन्यनुं ज्यां आवुं अपूर्व भान प्रगट्युं त्यां आत्मामां अपूर्व
सोनेरी प्रभात खील्युं.