अषाड: र४८९ : ९:
..... त..... त्त्व..... च..... र्चा.....
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(वांकानेर चैत्र सुद ८ थी १३नी रात्रिचर्चामांथी)
प्रश्न: एक समयमां राग अने वीतरागता बंने भावो साथे होय?
उत्तर:– हा. साधक ने अंशे राग ने अंशे वीतरागता एम बंने भावो एक साथे होय छे. जेम
सम्यग्दर्शन थयुं त्यां अंशे शुद्धता प्रगटी ने हजी साधकने अशुद्धता पण छे, ए रीते अंशे शुद्धता ने
अंशे अशुद्धता एम बंने भावो साधकदशामां एक साथे होय छे. पण तेमां जे अशुद्धता छे ते आस्रव–
बंधनुं कारण छे. एटले साधकने आस्रव, बंध, संवर ने निर्जरा एम चारेय प्रकारो एक पर्यायमां एक
साथे थाय छे.
अहो, आ तो अध्यात्मतत्त्वनो अंतरनो विषय छे. हिंदुस्ताननी आ मूळ विद्या छे.
प्रश्न:– राग उपर ज्यारे लक्ष होय त्यारे तो ज्ञानीने बहिर्मुखता ज छे ने?
उत्तर:– राग उपर भले उपयोगनुं लक्ष होय, पण ते वखतेय अंदर साधकने राग वगरनी शुद्ध
परिणति तो वर्ते ज छे. उपयोग भले बहार होय तेथी कांई शुद्धपरिणति जे प्रगटी छे तेनो अभाव
थतो नथी. जेटली शुद्धता छे तेटली अंतर्मुख परिणति छे.
प्रश्न:– सम्यग्दर्शन प्राप्त करवुं ज छे– तो तेणे शुं करवुं?
उत्तर:– राग अने चैतन्यने भिन्न जाणीने चैतन्य–स्वभावमां अंतर्मुख थवुं. पहेलां अंतरमां
ज्ञानथी निर्णय करे पछी अंतर्मुख उपयोगवडे निर्विकल्प अनुभव थतां सम्यग्दर्शन थाय छे.
पण पहेलां तेनी योग्यता माटे पण घणी तैयारी जोईए. देव–गुरु–शास्त्र केवा होय तेने
थाय.
प्रश्न:– आत्माए आ हाथ ऊंचो कर्यो – एम देखाय छे ने?
उत्तर:– ना; एम देखातुं नथी, पण पोतानी खोटी कल्पनाथी एम माने छे के आत्माए हाथ
ऊंचो कर्यो– आत्मा तो कांई एने आंखथी देखातो नथी; शरीरने देखे छे; शरीरनो हाथ ऊंचो थयो–
एम देखाय छे, पण आत्माए ते ऊंचो कर्यो– एम तो कांई देखातुं नथी. एम आत्मा पोताथी भिन्न
बीजा पदार्थोनुं कांई पण करे – ए वात मिथ्या छे; ते मिथ्यात्वमां ऊंधा अभिप्रायनुं मोटुं पाप छे,
तेमां चैतन्यनी विराधना छे. ते मोटो दोष अज्ञानीओने ख्यालमां आवतो नथी. पाप परिणाम करे ने
पैसा मळे– त्यां कोई एम माने के पापने लीधे पैसा मळ्या– तो ते वात जेम खोटी छे, ते ज प्र्रमाणे
हाथ ऊंचो थतां आत्माए तेने ऊंचो कर्यो – एम मानवुं ते पण खोटुं छे.
प्र्रश्न:– आत्मा क््यां रहेलो छे.
उत्तर:– आत्मा आत्मामां रहेलो छे. आत्मा