: १०: आत्मधर्म: २३७
शरीरमां रह्यो नथी. शरीर अने आत्मा भले एक जग्याए होय पण आत्मानी सत्ता शरीरथी जुदी छे.
आत्मा तो चैतन्यप्रकाशी छे.
आत्मा पोते ज छे, पण अज्ञानने लीधे पोते पोतानी सत्ताने ज भूली गयो, एटले आत्मा तो
जाणे गूम थई गयो! एम लागे छे. जो अंतर्मंथन करे तो पोतामां ज पोतानो पत्तो लागे तेम छे.
प्रश्न:– भेदज्ञान करवा माटे सीधो ने सरल उपाय शुं?
उत्तर:– जुदा लक्षण जाणीने जुदुं जाणवुं ते.
प्रश्न:– ए कई रीते थाय?
उत्तर:– अंदर विचारवुं जोईए के अंदर जाणनार तत्त्व छे ते हु छुं, ने विकल्पनी वृत्तिनुं उत्थान
ते मारा चैतन्यथी भिन्न छे.
प्रश्न:– मिथ्यात्व टाळवा माटे शुभभाव ने क्रियानी जरूर नथी लागती?
उत्तर:– भाई, शुभभावथी के देहनी क्रियाथी मिथ्यात्व टळे एम जे माने तेने तो मिथ्यात्वनु
पोषण थाय छे. शुभरागथी मने धर्म थशे ने देहनी क्रिया हुं करी शकुं छुं– एम माने तो तेमां
मिथ्यात्वनुं पोषण थाय छे.
प्रश्न:– तो पछी सम्यक्त्वनो मारग शुं?
उत्तर:– आ रागथी पार चैतन्यने जाणवो ते सम्यकत्त्वनो मारग छे. एना वगर शुभभाव तो
अनंतवार कर्या. भाई, समजणना घर ऊंडा छे. – एने माटे सत्समागमनो घणो अभ्यास जोईए,
घणी पात्रता ने घणी जिज्ञासा जोईए.
प्रश्न:– आत्माने जाणतां शुं थाय?
उत्तर:– अंतरमां उपयोग मुकीने आत्माने जाणतां अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद आवे. – एवो
अपूर्व स्वाद आवे के पूर्वे कदी आव्यो न हतो. पण ए कांई वातो कर्ये थाय एवुं नथी, एने माटे तो
अंतरनो कोई अपूर्व पुरुषार्थ जोईए.
प्रश्न:– वांचन–श्रवण घणुं करवा छतां अनुभव केम थतो नथी?
उत्तर:– अंदरमां तेवुं यथार्थ कारण आपतो नथी माटे; जो यथार्थ कारण आपे तो कार्य थाय ज.
अंतरनी धगशथी विचारणा जागे ने स्वभाव तरफनो प्रयत्न करे तो आत्मानुं कार्य न थाय एम बने
नहि. प्रयत्न करे रागनो, अने कार्य मांगे स्वभावनु, ए क््यांथी आवे? स्वभाव तरफनो प्रयत्न करे
तो स्वभावनुं कार्य (सम्यग्दर्शन) जरूर प्रगटे. एने माटे अंदरनो ऊंडो प्रयत्न जोईए.
प्रश्न:– संसार एटले शुं?
उत्तर:– पोतानुं जे शुद्धस्वरूप छे तेनाथी संसरवुं एटले च्युत थईने अशुद्धरूप परिणमवुं ते
संसार छे. एटले राग–द्वेष–अज्ञान वगेरे मलिनभाव ते संसार छे.
प्र्रश्न:– संसार क््यां छे?
उत्तर:– जीवनो मोक्ष ने संसार बंने जीवमां ज छे, जीवथी बहार नथी. जीवनी अशुद्धता ते ज
जीवनो संसार छे, बहारना संयोगमां जीवनो संसार नथी. ए ज रीते जीवनी शुद्धतारूप मोक्ष ते पण
जीवमां ज छे, ने ते मोक्षनो उपाय पण जीवमां ज छे.
प्रश्न:– संसार ए क््यो भाव? उत्तर:– संसार ते उदयभाव छे.
प्रश्न:– धर्म एटले शुं? उत्तर:– धर्म एटले आत्मानी शुद्धता. आत्मा शुं चीज छे तेना स्वभावनुं
भान करीने तेमां एकाग्रता वडे जे राग–द्वेषरहित शुद्धता प्रगटे ते धर्म छे.
प्रश्न:– सामायिकनी जरूर खरी के नहि? उत्तर:– एक समयनी सामायिक आत्मामां मुक्तिना