: ८: आत्मधर्म: २३७
आत्मानुं अवलोकन कर. देवाधिदेव तीर्थंकर सर्वज्ञभगवंतोए जेवो आत्मा अनुभव्यो, ने जेवो
वाणीमां कह्यो, तेवो ज संतोए अनुभव्यो, ने तेवो ज अहीं बताव्यो छे. तेवो ज अनुभव पोताना
ज्ञानमां करे त्यारे सम्यग्दर्शन थाय. अरे जीव! अंर्तलक्ष करीने एकवार उल्लासथी हा तो पाड.
*जेम दूध अने पाणीने एकता नथी, तेम आत्माने वर्णादि साथे के रागादि साथे एकता नथी.
*जेम अग्निने अने उष्णताने एकता छे, तेम आत्माने अने उपयोगने एकता छे.
*जेम दूध अने पाणीने भिन्नस्वभावपणुं छे, तेम उपयोगस्वरूप आत्माने अने
अनुपयोगस्वरूप वर्णादि तथा रागादिने भिन्नस्वभावपणुं छे.
*जेम अग्निने अने उष्णताने भिन्नस्वभावपणुं नथी, तेम उपयोगने अने आत्माने भिन्न
स्वभावपणुं नथी. अहो, अन्वय अने व्यतिरेक बंने प्रकारना द्रष्टांतथी आचार्यदेवे स्पष्ट भेदज्ञान
करावीने, रागथी ने जडथी जुदो उपयोगस्वरूप आत्मा बताव्यो छे. – आवा आत्माने अनुभववो ते
धर्म छे. एना सिवाय बीजा कोई प्रकारे धर्म थतो नथी.
आत्मानी सम्यग्दर्शनादि पर्याय पोताना निरूपाधि स्वभावना आश्रयथी ज उत्पन्न थाय छे. ते
जडना के विकारना आश्रयथी थती नथी; पर्यायना के भेदना आश्रये पण सम्यग्दर्शनादिनी उत्पत्ति
थती नथी. उपयोगस्वरूप आत्मामां पर्याय अभेदपणे लीन थाय त्यारे ज सम्यग्दर्शनादि थाय छे.
गुणस्थानोना भेदनो विचार करवाथी पण आत्मा अनुभवमां आवतो नथी. सर्वे परद्रव्योथी ने सर्वे
परभावोथी अधिक एवा आत्मामां पर्यायने अंतर्मुख करतां द्रव्य– पर्यायनो भेद पण भासतो नथी,
ए रीते अंतर्मुखद्रष्टिवडे आत्मस्वभावने प्रतीतमां लेवो ते सम्यग्दर्शन छे. ते सम्यग्दर्शननुं परिणमन
रागथी ने वर्णादिथी जुदुं छे. जेवो स्वभाव हतो तेवुं ज पर्यायमां पण परिणमन थई गयुं, तेनुं नाम
धर्म छे.
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अद्भुत चैतन्यतत्त्वनी प्राप्ति थई... पछी कोनो भय?
श्री गुरुप्रसादथी पोताना चैतन्यतत्त्वनी प्राप्ति थतां धर्मात्मा त्रण लोकमां निर्भय अने निष्कांक्ष
छे; सुरेन्द्र, नरेन्द्र के नागेन्द्र कोईनो भय तेने रहेतो नथी. श्री पद्मनंदीस्वामी सद्बोधचंद्रोदय
अधिकारमां कहे छे के–
त्रैलोक्ये किमिहास्ति कोपि स सुरः किंवा नरः किं फणी
यस्माद्वीर्मम यामि कातरतया यस्याश्रयं चापदि।
उक्तं यत्परमेश्वरेण गुरुणा निश्शेषवाञ्छाभय–
भ्रान्तिक्लेशहरं हृदि स्फुरति चेत्चितत्त्वमत्यद्भुतम्।।४९।।
श्री परमेश्वर गुरुद्वारा कहेलुं चैतन्यतत्त्व, – के जे समस्त प्रकारनी अभिलाषा, भय, भ्रम
तथा दुःखोने दूर करनार छे तथा अत्यंत अद्भुत आश्चर्यकारी छे– ते चैतन्यतत्त्व जो मारा
हृदयमां स्फुरायमान छे– मोजूद छे तो त्रणलोकमां एवो कोई देव–मनुष्य के नाग नथी के जेनाथी
हुं डरुं, ने आपत्तिथी कायर थईने कोईना शरणे जाउं! मारुं चैतन्यतत्त्व निर्भय छे तेनो ज मने
आश्रय छे.