Atmadharma magazine - Ank 237
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 8 of 25

background image
अषाड: २४८९ : ७:
उपयोगस्वरूप स्वघरमां वसवुं
फागण सुद एकमना रोज शेठश्री चुनीलाल हठीसंगना
मकानना वास्तुप्रसंगे समयसार गा. प७ ना प्रवचनमांथी

वर्णादि अने रागादिभावो ते जीवना स्वभावभूत नथी, जीवना चेतनामय स्वभावथी ते
भावो भिन्न छे. जीवना आवा चेतनामय स्वभावने ओळखीने तेमां वसवुं ते खरुं वास्तु छे. बहारना
जड मकानमां आत्मानुं खरुं वास्तु नथी. पोताना स्वगुणपर्यायमां वसवुं– तेना श्रद्धा–ज्ञान करीने
तेमां ठरवुं ते साचुं वास्तु छे; एवो स्वघरमां वसवाट जीवे पूर्वे कदी कर्यो नथी एटले ते ज अपूर्व
वास्तु छे.
भगवान! तुं तो ज्ञाताद्रष्टा छो; रागादि परभावो के शरीरादि परद्रव्यो तेनी साथे तारे भावनो
कांई पण संबंध नथी; एक क्षेत्रे रहेवा छतां भावथी अत्यंत भिन्नता छे. चेतनभावने अने
रागभावने जराय एकता नथी. राग बर्हिर्मुख भाव छे, तेने साथे लईने अंतरमां जवातुं नथी, माटे
अंतरना स्वभावथी ते भिन्न छे. जेम दूध अने पाणी एक क्षेत्रे होवा छतां बंनेने स्वभावथी एकता
नथी, बंनेने स्वभाव जुदा छे. तेम चैतन्यमूर्ति आत्माने वर्णादि–रागादि भावो साथे एकक्षेत्रपणुं होवा
छतां, अग्नि अने उष्णतानी माफक भावथी एकता तेमने नथी. आत्मा तो जाणकस्वभावी छे ने वर्णादि
जाणकस्वभाव वगरना छे; – शुभाशुभ भावो पण विकार छे तेमां चेतकपणुं नथी. चेतननी नजीक
रहेवाथी जाणे के तेओ पण चेतन साथे एकमेक ज होय – एम अज्ञानीने भिन्न लक्षणना अभानने
लीधे लागे छे. पण बंनेना लक्षण अत्यंत भिन्न छे, लक्षण द्वारा बंनेनी भिन्नता जाणीने अंतरमां
चैतन्यस्वभावनो रागथी भिन्न अनुभव करतां सम्यग्दर्शनादि थाय छे.
आत्मानुं स्वलक्षण शुं? – उपयोग.
ते उपयोग साथे आत्मा तादात्म्य छे, एकमेक छे;
ते उपयोग परभाव उपाधि वगरनो निरूपाधि छे.
रागादिभावोने उपयोग साथे एकता नथी.
अहा, अहीं तो कहे छे के जेम वर्णादिभावो उपयोगथी भिन्न छे तेम रागादिभावो पण
आत्माना उपयोगथी भिन्न छे. जेम शरीरथी उपयोग जुदो छे तेम रागथी पण उपयोग जुदो छे.
अनादिथी रागने पोतानुं स्वरूप मानीने ते रागमां वसवाट कर्यो छे; एटले स्वघरने भूलीने परघरमां
वस्यो छे. राग अने उपयोगनी भिन्नता अनुभवीने चैतन्यना उपयोगमां वास करवो ते अपूर्व वास्तु
छे. तेणे स्वघरमां वास कर्यो.
भाई, तारी सम्यग्दर्शन करवुं होय, आत्मानो सम्यक् अनुभव करवो होय तो अंर्तद्रष्टिवडे
आवा