: १२: आत्मधर्म: २३७
अंतरमां खूब श्रवण–मंथन ने स्वभाव तरफनो अभ्यास जोईए.
प्रश्न:– अनादिना मिथ्याद्रष्टिजीवने सम्यक्त्व कई गतिमां थाय?
उत्तर:– चारेय गतिमां थई शके. तेमां प्रथम उपशम सम्यक्त्व थाय छे, सातमी नरकमां पण
सम्यक्त्व पामी शके छे. क्षयिक सम्यक्त्वनो प्रारंभ मनुष्यगतिमां ज थाय छे.
प्रश्न:– आध्यात्मिकज्ञान कोने कहेवाय?
उत्तर:– आत्माना आश्रये जे ज्ञान थाय तेने आध्यात्मिक ज्ञान कहेवाय. एना संस्कार बीजा
भवमां पण आत्मानी साथे ज रहे छे.
प्रश्न:– निर्विकल्पदशा वखते जे अंतर्मुख ज्ञान उपयोग छे ते ज्ञाननुं ज्ञेय ज्ञान छे के आनंद?
उत्तर:– ते अंतर्मुख उपयोगनुं ज्ञेय आखो आत्मा छे; ज्ञान ने आनंद बधुं तेमां अभेद आवी
जाय छे; ते ज्ञानमां आनंदनुं वेदन व्यक्त छे.
प्रश्न:– आप पूर्वजन्मने मानो छो? पूर्वजन्म कई रीते अनुभवी शकाय?
प्रश्न:– आप पूर्वजन्मने मानो छो? पूर्वजन्म कई रीते अनुभवी शकाय?
उत्तर:– हा; आत्मा अनादिअनंत छे एटले आ पहेलां बीजा भवमां क््यांक तेनुं अस्तित्व हतुं.
आत्मा क््यां हतो– ते भले कदाच न जाणे पण एटलो तो निर्णय होय ज के पहेलां आत्मानुं अस्तित्व
क््यांक हतुं ज. एवो कोई नियम नथी के जातिस्मरणज्ञान थाय तो ज आत्मज्ञान थाय. कोईकने जाति
स्मरणज्ञान न होय छतां आत्मज्ञान होय; कोईकने जाति स्मरणज्ञान न होय छतां आत्मज्ञान होय;
कोईकने जातिस्मरणज्ञान होय छतां आत्मज्ञान न पण होय. – कोईकने बंने साथे वर्ते छे.
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धर्मात्माना गर्भकल्याणक अने जन्मकल्याणक
‘ममलपाहुड’ मां ७४ मुं प्रकरण ‘कल्यानक फूलना’ एटले के पंचकल्याणक संबंध हालरडुं छे,
तेमां अध्यात्मद्रष्टिथी पंचकल्याणक वर्णव्या छे. तेमां कहे छे के सम्यग्द्रष्टि श्रद्धावान भव्य जीवना
मनरूपी गर्भमां श्री जिनेन्द्र भगवान वसे छे. रत्नकुंखधारिणी मातानी जेम ते भव्य जीव कहे छे के हे
भाई! में सम्यग्दर्शनरूपी उत्तम रत्नने धारण कर्युं छे, मारा उदरमां शुद्धात्मानी प्रतीति प्रगटी छे. ए
सम्यग्दर्शनरूपी उत्तम रत्नने धारण कर्युं छे, मारा उदरमां शुद्धात्मानी प्रतीति प्रगटी छे. ए
सम्यग्दर्शनना प्रतापे आत्मामां मोक्षनां बीज रोपाया छे. हवे मने आत्मिकमार्ग अथवा निश्चय
मोक्षमार्ग मली गयो छे. मारी शक्तिना गर्भमां परमात्मा बिराजे छे. मने तरणतारणस्वामी अरिहंत
परमात्मा मली गया– के जेओ स्वयं संसारथी तर्या छे ने तरवानो मार्ग देखाडीने बीजा जीवोना पण
तारणहार छे.
जन्मकल्याणकने अनुलक्षीने कहे छे के, जेम तीर्थंकरना जन्मथी जगतमां प्रकाश फेलाय छे तेम
मारा हृदयमां शुद्ध परमात्माना अवतारथी सम्यग्ज्ञानथी प्रकाश प्रगट्यो छे... मारा आत्मामां धर्मनो
अवतार थयो, ते महा कल्याणकारी छे. हे भाई! मने परम सहकारी जिनेन्द्र भगवान सहजमां मळी
गया छे. आत्मामां शुद्धात्मपरिणति प्रगटी ते निश्चयथी जन्मकल्याणक छे. ते जन्मकल्याणक थतां
अंतरना स्वानुभवमां आनंदजळना कळश भरीभरीने आत्मानो अभिषेक थाय छे.
“अष्टप्रवचन”मांथी. (पुस्तक छपाय छे.)