अषाड: र४८९ : १प:
चैतन्यना अमृतस्वादने लक्षमां तो ले. तेने लक्षमां लेतां तने रागनो रस ऊडी जशे.
ज्ञानीने रागमां अंशमात्र पण आत्मबुद्धि थती नथी, एटले ते रागने पोतामां जरापण करतो
नथी, रागने स्वभावथी बहार ज जाणे छे. – आवी ज्ञानीनी अंतरवेदनानी दशा छे. आवा अंतरवेदन
वगर ज्ञानीपणुं थाय नहि. अने आवा अंर्तवेदनने ओळख्या वगर ज्ञानीने ओळख्या एम कही शकाय
नहि. “हुं तो ज्ञान ने आनंद ज छुं, ए ज मारुं कार्य छे” हुं तो ज्ञान ने आनंद ज छुं, ए ज मारुं कार्य
छे” एम अंर्तवेदनपूर्वक जे जाणे छे ते ज ज्ञानी छे. ए सिवाय भले शास्त्रो भणे के शुभरागनी
क्रियाओ करे पण रागना वेदनथी जुदो पड्या विना सम्यग्ज्ञान थाय नहि, ज्ञानचक्षु तेने उघडे नहि. अरे,
आ शरीरनी एक आंख काणी होय तो गमतुं नथी ने शरमथी ते आंख ढांके छे, तो आ चैतन्यना
ज्ञानचक्षु आंधळा थई गया छे तेनी कांई शरम खरी? ज्ञानचक्षु केम खूले तेनो कांई उपाय खरो? भाई,
कांईक आत्मानो प्रेम प्रगट कर... ने अंतर नजरथी तारा ज्ञानचक्षु खोलीने आत्माने देख.
धर्मात्मा कहे छे के मारो प्रीयतम–एटले के उत्कृष्ट प्रीयमां प्रीय एवो जे मारो चैतन्यनाथ – तेनी
साथे में रुचिना – प्रीतिना मींढोळ बांध्या... हवे रागनी रुचिना मींढोळ हुं नहि बांधुं. अहा, ज्यां
चैतन्यनो उत्कृष्ट प्रेम प्रगट करीने, तेना आनंदना आस्वादन पूर्वक तेने ज पोतानो प्रीयतम बनाव्यो
त्यां हवे सज्जन संत धर्मात्माने जगतमां बीजी कोई चीज प्रीय लागती नथी, चैतन्यनी प्रियता आडे
आखा जगतनीय प्रीति तेने ऊडी गई छे. चैतन्य साथे जे प्रीति बंधाणी तेने हवे जगतमां कोई तोडी
शके नहि, ए तो हवे अप्रतिहतपणे केवळज्ञान ने परमात्मपद लीधे छूटको. चैतन्यनी प्रीतिमां जेने
अप्रतिहत ज्ञानधारा शरू थई तेने, बीजमांथी पूर्णिमानी जेम, पूर्ण ज्ञानकळा खील्ये ज छूटको.
एवा अप्रतिहत ज्ञानधारावंता साधकसंतोने नमस्कार हो.
समकित महापुरुष
*महापुरुष कोण छे?
भेदज्ञानवडे परथी भिन्न एवुं महान चैतन्य तत्त्व जेणे प्रतीतमां लीधुं छे, तेत्र ज महापुरुष छे.
*ते महापुरुष शुं करे छे?
चैतन्य महाप्रभुने परभावोथी जुदो पाडीने भेदज्ञानी धर्मात्मा ऊज्जवळ द्रष्टिवडे पोताना
अंतरमां देखे छे, ने अतीन्द्रिय आनंदने अनुभवे छे. आवा सम्यग्द्रष्टि ते ज खरेखर महापुरुष अने
महात्मा छे. बीजा जगतमां महान कहेवाता होय तेओ्र खरेखर महान नथी.
*समकितनी प्रतीति कोना जेवी छे?
सम्यग्द्रष्टिनी प्रतीति गणधर भगवान जेवी छे. जेवो शुद्धआत्मा त्रण कथळना गणधरदेवोए
प्रतीतमां लीधो छे तेवो ज शुद्धआत्मा चोथा गुणस्थाने रहेली सम्यग्द्रष्टि बाळिकाए पण प्रतीतमां
लीधो छे, तेमां जराय फेर नथी.
*सम्यग्द्रष्टि केवा छे?
सम्यग्द्रष्टि ते जिनेश्वर भगवानना पुत्र छे; जेम गणधरोने ‘तीर्थंकरना पुत्र’ कहेवामां आव्या
छे, तेम सम्यग्द्रष्टि पण ‘जिनेश्वरना नंदन’ छे.
*सम्यग्द्रष्टिने शेनो रंग लाग्यो छे?
सम्यग्द्रष्टिने धर्मनो एटले पोताना चैतन्यस्वभावनो ज रंग लाग्यो छे.
*समकितीनो ते रंग केवो छे?
समकितने जे रंग लाग्यो तेमां कदी भंग पडवानो नथी. चैतन्यना रंगमां भंग पडा वगर
अप्रतिहतपणे ते केवळज्ञान लेशे. (प्रवचन उपरथी)