Atmadharma magazine - Ank 237
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: २०: आत्मधर्म: २३७
भगवान! ...
मारी साथे चालो...
ममलपाहूड’ मां तारणस्वामीए एक ‘उमाहो फूलना’ (एक प्रकारनुं हालरडुं) रच्युं छे;
तेमां एक सम्यग्द्रष्टि सिद्धगति पामवानी अथवा मोक्षमां जवानी भावना करे छे अने साथे श्री
अरिहन्त भगवाननी भक्ति पण करे छे; ते एवी भावना भावे छे के हे भगवान! ज्यांसुधी हुं
मोक्षपुरीमां न पहोंचुं त्यां सुधी आप मारी साथे ने साथे ज चालो. मोक्ष जतां जतां साधके पोताना
हृदयमां सिद्ध भगवानने स्थाप्या छे एटले सिद्ध भगवान तेनी साथे ने साथे ज छे. हे भगवान!
मोक्ष जतां सुधी आप मारी साथे ज रहो एटले के आपना उपदेशनुं अवलंबन ने आपना स्वरूपनुं
चिंतवन रहो; जेथी वच्चे भंग पड्या वगर आत्मानी उन्नति करतो करतो मोक्षपुरीमां चाल्यो जाउं;
वच्चे क््यांय पाछो न पडुं. ते साधक सिद्धक्षेत्रने ज पोतानो देश कहे छे. सिद्धपर्यायने पोतानो भेष
समजे छे, सिद्धसुखने पोतानी शय्या समजे छे. आ रीते
फुलना द्वारा प्रेरणा करी छे के हे जीव! तुं
निश्चिंत थईने सिद्ध जेवा तारा शुद्धात्मना अनुभवनो अभ्यास कर. ए स्वानुभवरूप जहाज पर
चढीने तुं मोक्षद्वीपमां पहोंचीश.
चलि चलहुन हो जिनवरस्वामी अपनेउ साथा...
चलि चलहुन हो जिनवरस्वामी अपनेउ देशा...
चलि चलहुन हो जिनवरस्वामी सिद्ध सहेसा...
साधक कहे छे: चलि चलहु... हे भगवान चालो... चालो! हुं सिद्धपदनुं साधन करीने मोक्षमां
आववा नीकळ्‌यो छुं, तो हे भगवान! आपणा मोक्षदेशमां शुं आप मारी साथे नहीं चालो! चलि
चलहु... चालो... चालो... भगवान! मारी साथे चालो. हे जिनेन्द्र! निजस्वरूपना स्वदेशमां आप
मारी साथे चालो.
जुओ तो खरा, केवी सरस रचना करी छे!
मोक्षनो साधक भव्य जीव श्री अरिहंतभक्तिमां मग्न थईने कहे छे के हे जिनेन्द्र! कया आप
हमारी साथे अपने मोक्षरूपी देशमें न चलोगे? मुक्तिना मिलनने माटे मारा अंतरमां आत्मकमळना
रसनो अनुभव प्रगट थयो छे. मने श्री जिनेन्द्र भगवाननो एवो उपदेश मळ्‌यो छे के चैतन्यसूर्यनो
अनुभव करुं ने वीतरागभावने प्रगट करुं. ते हितकारी सहायक भाववडे आ जीव मुक्तिपुरीमां प्रवेश
करे छे.