
अरिहन्त भगवाननी भक्ति पण करे छे; ते एवी भावना भावे छे के हे भगवान! ज्यांसुधी हुं
मोक्षपुरीमां न पहोंचुं त्यां सुधी आप मारी साथे ने साथे ज चालो. मोक्ष जतां जतां साधके पोताना
हृदयमां सिद्ध भगवानने स्थाप्या छे एटले सिद्ध भगवान तेनी साथे ने साथे ज छे. हे भगवान!
मोक्ष जतां सुधी आप मारी साथे ज रहो एटले के आपना उपदेशनुं अवलंबन ने आपना स्वरूपनुं
चिंतवन रहो; जेथी वच्चे भंग पड्या वगर आत्मानी उन्नति करतो करतो मोक्षपुरीमां चाल्यो जाउं;
वच्चे क््यांय पाछो न पडुं. ते साधक सिद्धक्षेत्रने ज पोतानो देश कहे छे. सिद्धपर्यायने पोतानो भेष
समजे छे, सिद्धसुखने पोतानी शय्या समजे छे. आ रीते
चढीने तुं मोक्षद्वीपमां पहोंचीश.
मोक्षनो साधक भव्य जीव श्री अरिहंतभक्तिमां मग्न थईने कहे छे के हे जिनेन्द्र! कया आप
रसनो अनुभव प्रगट थयो छे. मने श्री जिनेन्द्र भगवाननो एवो उपदेश मळ्यो छे के चैतन्यसूर्यनो
अनुभव करुं ने वीतरागभावने प्रगट करुं. ते हितकारी सहायक भाववडे आ जीव मुक्तिपुरीमां प्रवेश
करे छे.