
पंचपरमेष्ठीने साक्षात् हाजर करीने चारित्रदशाने साधे छे... मोक्षदशानो स्वयंवर करे छे. तेम अहीं
साधक कहे छे के हे भगवान! चालो... मारी साथमां चालो, मोक्षपुरीमां जतां मारी साथे ज रहो.
अहो! पंचपरमेष्ठीनो ज्यां साथ मळ्यो त्यां मोक्षदशा पाछी न फरे, वच्चे विघ्न न होय. प्रभो!
चैतन्यनी लगनी वडे मोक्षदशा साथेना लग्नमां आपने बोलाव्या छे. जेम लग्न वखते मोटा शेठियाने
साथे राखे छे तेमां हेतु ए छे के कन्या कोई कारणे पाछी न फरे... तेम अहीं साधक जीव चैतन्यनी
लगनी पूर्वक शेठ–श्रेष्ठ एवा अनंता तीर्थंकरो–सिद्धभगवंतोने पासमां–साथमां–हृदयमां राखीने मोक्षने
साधवा नीकळ्यो, हवे तेनी मोक्षदशा अटके नहि, ते पाछो फरे नहि, अप्रतिहतभावे मोक्षदशा लीधे
छूटको.
आपनी भक्ति ने आपना स्वरूपनुं ध्यान नहि छोडुं. साधक कहे छे–सिद्धपर्याय ते मारी शैया
छे, –के जेमां आत्मा अनंतकाळ सुधी परमानंद सहित विश्राम करे छे. हे जिनेंद्र भगवान!
आवी सिद्धशैयामां शुं आप मारी साथे नहि चालो! हे भगवान! मुक्तिपुरीमां जता आप मारा
सहकारी छो. प्रभो! हुं सिद्ध भगवाननी पासे जाउं छुं. आप मारी साथे सिद्धपुरीमां चालो.
प्रभो! मोक्षपथमां आप मारा सार्थवाह छो. मोक्षमां जवा माटे आप मारा सथगारा–साथीदार
छो... आप मारी साथे ज रहो. अमने आपनो ज साथ छे, बीजा कोईनो साथ नथी. रागनो य
साथ नथी. समयसारमां