Atmadharma magazine - Ank 237
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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शांतिनाथ भगवान
श्रुतपंचमीना रोज गुरुदेवनी उपस्थितिमां जेमनी वेदी प्रतिष्ठा थई
वि वि ध स मा चा र
पू. गुरुदेव जेठ वद चोथना रोज सोनगढ पधारतां भक्तजनोए उत्साहथी स्वागत कर्युं हतुं,
त्यार पहेलां पावागीर–उन सिद्धक्षेत्रनी यात्रा (जेठ सुद) १प ना रोज करी हती; पावागीरमां
सुवर्णभद्रादि चार मुनिवरो सिद्धि पाम्या छे, तथा मंदिरना भोंयरामां त्रण विशाळ जिनबिंबो छे.
यात्रा दरमियान गुरुदेवे भावभीनी मुनिभक्ति करावी हती. आ सिद्धिक्षेत्रमां आखो दिवस रह्या हता.
बीजे दिवसे बडवानी सिद्धिधामनी यात्रा करी हती. त्यां ईद्रजीत, कुंभकर्ण वगेरे करोडो मूनिओनुं
सिद्धिधाम तथा कुंदकुंदाचार्यदेवनी हाथ जोडेली खडगासन प्रतिमा छे, तेमज बावनगथा–८४ फूट ऊंचा
आदिनाथ प्रभुना प्रतिमा पर्वतमां कोतरेला छे. अहीं पण उत्साहथी पूजन भक्ति थया हता, ने
आखो दिवस रह्या हता. बीजे दिवसे नौकाथी नर्मदा नदी ओळंगीने सौराष्ट्र तरफ प्रस्थान कर्युं हतुं...
ने जेठ वद चोथे सोनगढ पधार्या हता.
सवारना प्र्रवचनमां प्रवचनसार वंचाय छे, तेमां ज्ञानस्वभावनो अचिंत्य महिमा सांभळता
जिज्ञासुओने उल्लास आवे छे. बपोरे समयसरना १४मी वखतना प्रवचनोमां अध्यात्मरस घोलन
चाली रह्युं छे. रात्रि चर्चाना समये श्री षडखंडागममांथी गुरुदेवे निशानी करेला महत्वना भागोनुं
वांचन अथवा तो समयसार कलश टीकाना नवीन हिंदी भाषांतरनुं वांचन चाले छे.