Atmadharma magazine - Ank 237
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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अषाड: र४८९ : ३:
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मोक्षमार्ग प्रकाशकना प्रवचनोमांथी
मोक्षमार्ग प्रकाशकमां पं. श्री टोडरमल्लजीए अनेक प्रकारे
तत्त्वोनी छणावट करी छे; पू. गुरुदेवने आ ग्रंथ घणो प्रिय छे; सम्यक्त्व
संबंधी प्रवृत्तिमां जीव केवी भूल करे छे– ए वगेरे संबंधी स्पष्टीकरण
अहीं आप्युं छे.
(ले: ब्र. हरिलाल जैन)
अज्ञानी पोताने शुद्धसिद्धसमान चिंतववा ईच्छे छे तेमां तेनी शुं भूल छे?
पर्यायने द्रव्य साथे भेळवीने शुद्धता प्रगट कर्या वगर, एकला द्रव्यनी शुद्धतानुं चिंतन ते तो
विकल्प मात्र ज छे, ‘हुं शुद्ध छुं’ – एवो विकल्प कर्या करे तेथी कांई शुद्धतानो अनुभव थाय नहि;
अज्ञानी ते विकल्पने ज शुद्धतानो अनुभव मानी ल्ये छे, ते तेनीय भूल छे. वळी पर्यायमां शुद्धता के
अशुद्धता कई रीते छे तेने जाण्या वगर आत्मानुं साचुं स्वरूप चिंतनमां आवे ज नहि. द्रव्यसन्मुख थतां
पर्यायमां शुद्धता प्रगटे तेनुं नाम शुद्धता छे. पर्यायमां मिथ्यात्व होय अने कहे के ‘हुं शुद्धसिद्धसमान
आत्माने चिंतवुं छुं’ – तो तेनी ए वात कल्पनामात्र ज छे. शुद्धआत्मानुं चिंतन करे अने पर्यायमां शुद्धता
न होवा छतां शुद्धता मानी लेवी– ते तो मिथ्यात्व ज छे. पर्यायमां शुद्धता थया वगर ज द्रव्यनी शुद्धतानो
स्वीकार के अनुभव करी रीते कर्यो? माटे पर्यायमां शुद्धता प्रगट्या वगर शुद्धआत्मानुं चिंतन यथार्थ होतुं
नथी. एकली शक्ति कांई वेदनरूप नथी, वेदनरूप तो वर्तमान पर्याय छे.
शास्त्रमां तो शुद्धआत्माना चिंतननो उपदेश आप्यो छे?
स्वभाव सन्मुख थतां पर्याय पण निर्मळ थईने तेमां भळी गई, ए रीते शुद्धपर्याय सहितना
द्रव्यने शुद्धआत्मा कह्यो छे. निर्मळ अनुभूति प्रगटी त्यारे शुद्धआत्मानो अनुभव कह्यो. पर्यायमां
एकली अशुद्धता होय अने कहे के अमे शुद्धआत्मानुं चिंतवन करीए छीए, – तो ते भ्रम छे; पर्यायमां
शुद्धता प्रगट्या वगर शुद्धात्मानुं चिंतन होई शके नहि. पूर्णशक्तिथी भरेलो जे शुद्ध कारणपरमात्मा,
तेनुं ध्यान करतां पर्यायमां शुद्धकार्य (सम्यग्दर्शनादि) न प्रगटे एम बने नहि. पर्यायमां शुद्धता प्रगटी
न होय ने मानी ल्ये के शुद्धता थई गई, अशुद्धता छे ज नहि, – तो ते जीव भ्रमणामां छे, तेनुं
शुद्धात्मानुं चिंतन ते