Atmadharma magazine - Ank 237
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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अषाड: २४८९ : प:
द्रढता थाय छे ने कषायोनी मंदता थाय छे. केवा केवा जीवोए केवा प्रसंगोमां केवी आराधना करी–
ईत्यादि वर्णनमां उपयोग जोडतां पोताने आराधनानी द्रढता थाय छे ने मोक्षमार्गनो उत्साह जागे छे.
माटे पोतानी शक्ति अनुसार शास्त्रअभ्यास करवो योग्य छे. शास्त्रअभ्यासनी अरुचि करीने तेनो
निषेध करे तो तो तेने अध्यात्मनी रुचि पण साची नथी. जेने जेनो प्रेम होय ते (१) तेनी कथा
होंसथी सांभळे, (र) तेना विशेष प्रकारो जाणे, (३) तेनां आचरणनां साधनो जाणे ने (४) तेनुं
स्वरूप जाणे तेमां तेने उत्साह होयछे, कंटाळो नथी होतो; तेम जेने आत्मरुचि थई छे– मोक्षमार्ग
साधवानो प्रेम जाग्यो छे ते जीव (१) तेवा आत्मरुचिवंत अने मोक्षमार्गने साधनारा तीर्थंकरो
वगेरेनी कथा प्रेमपूर्वक सांभळे छे, (र) आत्माना विशेष प्रकारो गुणस्थानो–मार्गणास्थानो वगेरेनो
पण अभ्यास करे छे, (३) महापुरुषोए केवा आचरण कर्या ते पण जाणे – व्रतादिनुं स्वरूप जाणे,
तेमज (४) आत्माना अनुभवनुं वर्णन वगेरे अध्यात्मशास्त्रोने पण जाणे. – ए रीते चारे
अनुयोगनो अभ्यास कार्यकारी छे. माटे अध्यात्मशास्त्रो ज वांचवा ने करणानुयोग–कथानुयोग
वगेरेनां शास्त्रो न वांचवा– एम निषेध करवो योग्य नथी.
आत्मस्वरूपना अनुभवमांथी बहार नीकळीने जे बुद्धि परद्रव्यमां भमे तेने तो
पद्मनंदीपच्चीसीमां व्यभिचारिणीबुद्धि कही छे, – तो शास्त्रअभ्यासमां उपयोग शा माटे जोईए?
भाई, आत्मानो उपयोग आत्मामां ज रहे ते ज उत्तम छे, अने आत्मामांथी खसीने
परद्रव्यमां आत्मानो उपयोग भमे तो ते दुषित छे– ए वात तो साची; परंतु ज्यारे स्वरूपमां उपयोग
लीन न रही शके ने परद्रव्यमां जाय त्यारे, अन्य अशुभ विषय कषायोमां उपयोग भमे तेना करतां
तो वीतरागी शास्त्रना अभ्यासमां उपयोग जोडवो– ते भलुं छे. माटे बीजा बाह्य विषयोना पापमां
उपयोग जोडवा करतां शास्त्राभ्यासमां बुद्धि लगाडवी योग्य छे. गणधरो अने महामुनिओ पण
चैतन्यना ध्यानमां निरंतर नथी रही शकता त्यारे शास्त्रस्वाध्याय, दिव्यध्वनिनुं श्रवण वगेरेमां प्रवर्ते
छे;– अने तुं एनो निषेध करे छे, तो शुं महामुनिओ करतां य तुं एनो निषेध करे छे, तो शुं
महामुनिओ करतां य तुं आगळ वधी गयो!! – शास्त्राभ्यासने विकल्प कहीने निरर्थक कहेवो ने अन्य
विषयकषायोमां प्रवर्तवुं ते तो निश्चयाभासी जीवनुं स्वछंदीपणुं ज छे.
अमारे तो एकलुं आत्मज्ञाननुं ज काम छे, बीजा तत्त्वोने जाणवानुं शुं काम छे?
अरे भाई, एकलो आत्मा–आत्मा गोख्या करवाथी तो मोक्षमार्ग थाय नहि; पण आत्मा शुं,
तेनी अवस्था शुं, तेमां शुद्धता–अशुद्धताना प्रकार केवा छे, जीवथी भिन्न अजीव शुं? मोक्षमार्ग शुं?
मोक्षमार्गने रोकनार कोण? एना ज्ञान वगर आत्मज्ञान पण साचुं थतुं नथी ने मोक्षमार्गने साधी
शकातो नथी. आत्मा–आत्मा कर्या करे ने बीजा तत्त्वोने जाणवानो निषेध करे तो तत्त्वार्थश्रद्धान
क््यांथी थाय? आत्माने दुःखदायक एवा आस्रव–बंध शुं तेने जाण्या वगर मोक्षमार्ग साधी शकाय
नहि. कया कारणोथी कर्मनो अभाव थाय छे– ते ओळखवुं जोईए. बंध–मोक्षनां कारणोने बराबर
ओळखे तो ज बंधनां कारणरूप सम्यग्दर्शनादि प्रगट करवानो उद्यम करे. माटे आत्मा सिवाय बीजा
तत्त्वो–संवर–निर्जरा आस्रव–बंध वगेरे पण जाणवा जोईए.
ए तो बराबर, पण त्रणलोक वगेरेनुं वर्णन जाणवामां शुं प्रयोजन छे?
त्रणलोक वगेरेनुं वर्णन जाणवुं ते पण कांई रागनी वृद्धिनुं कारण नथी, पण उलटुं राग
घटवानुं ज