श्रावण: २४८९ : ९ :
अबंधरूप थई, पण जेटलो राग रह्यो तेटलुं बंधन पण छे. कर्मना संबंधवाळी पर्यायने पण जो अबंध
जाणी ल्ये तो तो ज्ञान ज खोटुं थयुं. स्वभावथी आत्मा अबंध छे, पण पर्यायमां ते अबंधपणुं क्यारे
प्रगटे? के अबंधस्वभावमां पर्याय अभेद थाय त्यारे; पर्याय हजी रागादिमां ज वर्तती होय अने एम
कहे के हुं अबंध छुं तो ते जीव भ्रांतिमां ज छे. ‘अबंध छुं’ एम कहेवाथी के विचार करवाथी कांई
अबंधपणुं नथी प्रगटतुं, पण स्वभावसन्मुख थईने अनुभव करतां ज पर्यायमां अबंधपणुं प्रगटे छे.
माटे पर्यायमां अबंधपणुं केटलुं प्रगट्युं ने केटलुं बंधन बाकी रह्युं ते बंने पडखा जाणवा जोईए.
* बंध–मोक्षना विचारनुं अमारे शुं प्रयोजन छे? केम के शास्त्रोमां तो बंध–मोक्षना
हे भाई, बंध अने मोक्षना स्वरूपने जाणवुं ते कांई दोष नथी; बंध अने मोक्षना यथार्थ
स्वरूपने जाण्या वगर तुं मोक्षने कई रीते साधीश? ने बंधने कई रीते टाळीश? जे जीव बंध–मोक्षना
विकल्पमां ज अटकी रहे छे पण विकल्पथी खसीने शुद्ध चैतन्यने अनुभवतो नथी ते जीवने
सम्यग्दर्शनादि थता नथी, तेथी एम कह्युं छे के बंध–मोक्षना विचारथी जीव बंधाय छे. एकली
पर्यायबुद्धिमां ज रह्या करे ने द्रव्यस्वभाव एकरूप छे तेने ओळखे नहि–तो तेने मोक्षमार्ग थतो नथी,
तेम ज पर्यायमां बंधन अने मुक्तिरूप अनेक अवस्था थाय छे तेने जो न ओळखे तो बंधनथी
छूटवानो ने मोक्ष पामवानो उद्यम पण शा माटे करे? माटे द्रव्य पर्याय बंनेने जाणीने मोक्षमार्गना
उद्यममां प्रवर्तवुं योग्य छे. बंध–मोक्षना विकल्पथी बंधन कह्युं पण तेनो अर्थ कांई एवो नथी के बंध–
मोक्षनुं ज्ञान पण न करवुं. जो साचुं ज्ञान पण न करे तो तो मिथ्या विकल्पो कदी मटे नहि.
* अमे तो एकला निश्चयनयनी मुख्यतानुं ज ग्रहण करशुं, व्यवहारनुं ने पर्यायना
अरे भाई, पर्यायना यथार्थ विवेक वगर निश्चय स्वभावनुं यथार्थपणे ग्रहण थई शके ज नहि.
जिनशासनमां तो निश्चयस्वभावना आश्रये मोक्षमार्ग प्रगट करवानो उपदेश छे; पण पर्यायमां जे
सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान प्रगट करतो नथी, रागद्वेषने टाळवानो उद्यम करतो नथी, ने ‘शुद्धात्मा–शुद्धात्मा’ एम
गोख्या करे छे, तो तेने मोक्षमार्ग केवो? मोक्षमार्ग तो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रना उद्यमथी ज प्रगटे छे.
साधकना साचा साथीदार
जेणे पोताना ज्ञानमां भगवाननी सर्वज्ञतानो निर्णय करीने,
पोताना ज्ञानमां सर्वज्ञता बेसाडी तेणे स्वसन्मुखता वडे मोक्षने
साधवामां भगवानने पोताना साथीदार बनाव्या.
..... हवे ज्ञानमां सर्वज्ञने साथे ने साथे राखीने ते मोक्षने साधशे.
जे ज्ञानमां सर्वज्ञने राख्या ते ज्ञानमां राग रही शके नहि.
अहा, साधकभाव! पूर्ण साध्यना स्वीकारपूर्वक वर्ती रह्यो छे. पूर्ण
साध्यनो अंतरमां जेणे स्वीकार कर्यो तेणे साधकभावमां सर्वज्ञने पोताना
साथीदार बनाव्या.