: १० : आत्मधर्म: २३८
ज्यांथी लव अने कुश राजकुमारो मुक्ति पाम्या छे एवा पावागढ सिद्धक्षेत्रनी यात्राप्रसंगे पू.
गुरुदेवे कह्युं के: वाह, ए राजकुमारोनी दशा! आ पावागढ उपर नजर पडी त्यारथी एमनुं जीवन
नजरे तरवरे छे..... अहा, धन्य एमनी मुनिदशा! धन्य एमनो वैराग्य! ने धन्य एमनुं जीवन!
जन्मीने पोतानो अवतार एमणे सफळ कर्यो.
रामचंद्र अने लक्ष्मण ए बंने भाईओने परस्पर अपार स्नेह हतो. एकवार देवो तेमना
स्नेहनी परीक्षा करवा आव्या..... रामचंद्रजीना मरणना कृत्रिम समाचार सांभळतां ज “हा... राम”
कहेतांक लक्ष्मण सिंहासन उपर ढळी पड्या ने मृत्यु पाम्या तरत रामचंद्रजी त्यां आवे छे ने जाणे
लक्ष्मण जीवता ज होय एम मानीने तेना मृतशरीरने खभे उपाडीने साथे ने साथे फेरवे छे....
दिवसोना दिवसो वीती रह्या छे.
काकानुं मृत्युं ने पितानी आवी दशा नीहाळीने रामचंद्रजीना बे पुत्रो लव अने कुश ए बंनेने
संसारथी वैराग्य थाय छे.... ने दीक्षा लेवा माटे पिताजी पासे रजा मांगवा आवे छे. रामचंद्रना खभे
तो लक्ष्मणनो देह पड्यो छे ने बंने कुमारो आवीने अति विनयपूर्वक हाथ जोडीने वैराग्यभरेली
वाणीथी रजा मांगे छे: हे पिताजी! आ क्षणभंगुर असार संसारने