श्रावण: २४८९ : ११ :
छोडीने हवे अमे दीक्षा लेवा मांगीए छीए.... दीक्षा लईने अमे ध्रुव चैतन्यने ध्यावशुं ने आनंदमां
लीन थईने आ ज भवे सिद्धपदने साधशुं. माटे अमने दीक्षा लेवानी रजा आपो. हे तात!
जिनशासनना प्रतापे सिद्धपदने साधवानो जे अंतरनो मार्ग ते अमे जोयो छे, अंतरना जोयेला मार्गे
हवे अमे जशुं. आम कहीने, जेमना रोमे रोमे– प्रदेशे प्रदेशे वैराग्यनी धारा उल्लसी छे एवा ते बंने
राजकुमारो मुनिदीक्षा लेवा माटे रामचंद्रजीने नमन करीने वनमां चाल्या जाय छे.
मुनि थईने ते बंने मुनिवरो वन–जंगलमां विचरे छे ने आत्मध्यानमां अतीन्द्रिय आनंदनो
अनुभव करता करता केवळज्ञान साथे केलि करे छे. लव अने कुश बंने सीता सतीना पुत्रो हता.... बंने
चरमशरीरी हता.... बंने साथे जन्म्या हता.... बंनेए साथे दीक्षा लीधी.... ने बंने मोक्ष पण अहींथी
(–पावागढथी) पाम्या.... बंनेने चैतन्यनुं भान हतुं ने चैतन्यना परम आनंदनो मार्ग अंतरमां
देख्यो हतो. अंतरमां देखेला मार्गे चालीने तेओ अहींथी सिद्ध परमात्मा थया. अंतरना चिदानंद
स्वरूपमां लीन थईने तेमणे पोतानी आत्मशांतिने साधी.
जेनामां ठांसी ठांसीने आनंद भरेलो छे एवा चिदानंद स्वभावना भानसहित दीक्षा माटे बंने
कुमारो कहे छे के हे पिताजी! अमने आज्ञा आपो.... अमे हवे अमारा चिदानंद स्वरूपमां समाई जवा
मागीए छीए. आ संसारमां बहारना भाव अनंतकाळ कर्या, हवे अमारे स्वप्नेय संसार जोईतो
नथी.... हवे तो मुनि थईने अमे अमारी पूर्ण अतीन्द्रिय परम आनंददशाने साधशुं. आ
संसारभ्रमणमां चारे गतिना अवतार जीवे अनंतवार कर्या छे, एकमात्र सिद्धपद कदी प्राप्त कर्युं नथी....
हवे तो अमे अमारा चिदानंद स्वरूपमां समाई जशुं ने अभूतपूर्व एवा सिद्धपदने पामशुं. स्वभावनो
मार्ग अमे जोयेलो छे, ते जाणेला मार्गे जशुं ने मुक्तिने वरशुंं. –आम वैराग्यथी पितानी रजा लईने
बंने कुमारो महेन्द्र उद्यानमां गया ने अमृतेश्वरमुनिराजना संघमां दीक्षा लीधी.... पछी
आत्मध्यानपूर्वक विचरता विचरता अहीं पावागढ पर्वत उपर आव्या ने ध्यानमां लीन थईने
केवळज्ञान प्रगट करीने मोक्षपद पाम्या.
(“बे राजकुमारोनो वैराग्य” नामनी पुस्तिकामांथी)
“बे राजकुमारोना वैराग्य”नी पुस्तिका मळी शकती न हती; हवे तेनी
बीजी आवृत्ति छपायेल होवाथी मळी शके छे. (किंमत २० न. पै.)
ते ज्ञानीना चरणमां.......
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप परिणमन ते ज धर्मात्मानुं
परिणमन छे, राग ते धर्मात्मानुं परिणमन नथी, ते तो धर्मात्माने
परज्ञेयरूप छे, जेम थांभलो वगेरे ज्ञानथी भिन्न परज्ञेयरूप छे तेम राग
पण ज्ञानथी भिन्न परज्ञेयरूप छे. आ रीते रागथी भिन्न एवा ज्ञान–
दर्शन–चारित्ररूप परिणमन वडे ज्ञानी ओळखाय छे, रागवडे ज्ञानी
ओळखाता नथी, राग होवा छतां एनी दशा रागातीत वर्ते छे.
जेम– देह छतां जेनी दशा वर्ते देहातीत,
तेम– राग छतां जेनी दशा वर्ते रागातीत,
ते ज्ञानीना चरणमां हो वंदन अगणीत.