उपाय छे. रागादिथी भिन्नपणे चैतन्यस्वरूपना निरंतर अभ्यासथी छ महिनानी अंदर जरूर तेनी
प्राप्ति थाय छे.
परभावथी विरक्त थईने अने चैतन्यस्वभावमां अनुरक्त थईने एकाग्रतानो अभ्यास करतां
जरूर अंतरमं पोताने पोतानुं स्वरूप अनुभवमां आवे छे, अहा, जेने एकली आत्मानी लगनी
लागी ने बीजी लगनी वच्चे आववा न दे तेने सम्यग्दर्शन अने आनंद प्रगट्या वगर रहे ज
नहि. स्वानुभवना आवा अभ्यास वडे अनंता जीवो अनादि मिथ्याद्रष्टिमांथी सम्यग्दर्शन प्रगट
करीने अंतर्मुहूर्तमां केवळज्ञान पामी गया छे. तो पछी तेना ज अभ्यासमां जे लागे तेने
सम्यग्दर्शन थवुं तो सुगम छे.
नथी, जो आत्मानी लगनी अने प्रेम लाग्यो होय तो तेने माटे वर्तमानमां ज उद्यम करे.....
“अत्यारे बीजुं करीए ने पछी आत्मानुं करशुं” एनो अर्थ ए थयो के तने आत्मा एटलो
वहालो नथी के जेटला बीजा काम वहाला छे! परभाव तने गोठे छे एटले तेनो हजी तने थाक
नथी लाग्यो. जेने परभावनो थाक लागे के अरे, आ रागादि परभावमां क्यांय मारी शांति
नथी, मारी शांति मारा चैतन्यमां ज छे–एम ऊंडेथी जिज्ञासु थईने, रागादिथी भिन्न चैतन्यना
अनुभवनो जेने उत्साह जाग्यो तेनो उल्लास वर्तमानमां ज ते तरफ वळे, वर्तमानमां ज तेना
वीर्यना वेगनी दिशा पलटी जाय, एटले के परभावमांथी वीर्यनो उल्लास पाछो वळीने स्वभाव
तरफ तेनो उल्लास वळे.
रागादिथी भिन्न चैतन्यस्वरूप जीव भेदज्ञान वडे अंतरमां स्वयमेव अनुभवाय छे माटे एवा
अनुभवनो तुं उद्यम कर. बापु! आवो अवसर मळ्यो, आवो मनुष्यअवतार ने आवो संत्
समागम मळ्यो, तो हवे जगतनो बीजो बधो कोलाहल छोडीने तारा अंतरमां आवा आत्माना
स्वानुभव माटे उद्यम कर.... कटिबद्ध थईने छ महिना तो तेनी पाछळ एवो लाग के जरूर
स्वानुभव थाय ज.