Atmadharma magazine - Ank 238
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म: २३८
अहो, तारा पंथ अंतरमां छे.... तारा साध्य ने साधन बधुंय तारा अंतरमां ज समाय छे....
बीजे क्यांय तारे जोवानुं नथी. तारो स्वभाव निरालंबी ने तेनो पंथ पण निरालंबी; शुभ रागनुंय
अवलंबन तारा अनुभवमां नथी.
अरे, आ संसारनी स्थितिने..... ने आ संसारनो कोलाहल तारा स्वरूपथी बहार छे.... तारा
स्वरूपना अनुभवमां छे ज नहीं. सन्तो आवो स्वानुभव करीने कहे छे के हे भाई! हवे तो तुं आ
जगतना दुःखमय कोलाहलथी विरक्त था.... अनेक प्रकारनी विपरीत मान्यताना कोलाहलने तुं छोड ने
सर्वज्ञ भगवाने कहेला चैतन्यस्वरूपमां तारा उपयोगने तुं जोड.... आवा प्रयत्नथी छ महिनामां तो
जरूर तने सम्यग्दर्शन थशे.
अरे, तारा चैतन्यक्षेत्रमां ज्ञान–आनंदना ज पाक पाके एवुं तारुं खेतर छे, तारुं चैतन्यक्षेत्र
एवुं नथी के तेमां विकारनो पाक ऊगे. जेवो सिद्धनो आनंद छे एवो आनंद तारा अंतरमां भर्यो छे....
आत्मा तो आनंदनुं ज निवासधाम छे, तेमां तुं जो एटली ज वार छे. ए ज तारो खरो भेख छे.
आकुळता ते तारो भेख नथी. तारो भेख तो ते छे के जेमां तारा स्वभावनुं रहस्य तने अनुभवमां
आवे. रहस्यअनुभूति एटले के गुप्त स्वरूपनो प्रगट अनुभव थाय तेमां तने तारा आनंदनो स्वाद
आवे छे. परभावमां तारा आनंदनो स्वाद नथी, एमां तो दुःख छे. स्वभावने भूलीने भाई, तुं
परभावनी भूलवणीमां भूलो पडी गयो; हवे एमांथी तारे बहार नीकळवुं होय तो कोई जाणकार
संतने मार्ग पूछीने ते रस्ते जा. जेम वडोदराना मोटा बागमां भूलभूलामणी छे, तेमां एकवार भूला
पडेला (गुरुदेव), अने बहार नीकळवानो मार्ग मळतो न हतो, त्यारे जाणकार माणसने मार्ग पूछीने
बहार नीकळी गया.... तेम हे भाई! जो तने भवचक्रना चकरावानी भूलभूलामणीमांथी बहार
नीकळवानी धगश जागती होय, ने तेमांथी बहार नीकळीने स्वभावनो अनुभव करवानी लगनी
लागी होय, तो संतो पासेथी स्वानुभवनो मार्ग जाणीने छ महिना अभ्यास कर.... संतो मार्गनो
पोकार करीने कहे छे के सांभळ! जो तुं रागमां धर्म मानतो हो तो ते मार्गे कदी तारो भवचक्रमांथी
छूटकारो नहि थाय; भवचक्रथी छूटकारानो मार्ग एक ज छे के अंतर्मुख थईने रागथी जुदा चैतन्यने
लक्षमां लईने तेना अनुभवना उद्यममां लाग.
संसारनी स्थिति ज एवी छे के तेमां अनुकूळता ने
प्रतिकूळता द्विविध प्रसंगो सदाय वर्त्या ज करे छे; ए
बंनेथी उपक्षित थईने तुं तारा ज्ञानस्वभावमां आव.
स्पष्ट देखाय छे के संसारमां सुख नथी, संयोगमां
सुख नथी, छतां जीव केम तेमां मशगुल रहे छे?
स्पष्ट वेदाय छे के आत्मस्वरूपना चिंतन–मननमां
शांति छे, छतां जीव पोताना उपयोगने तेमां केम जोडतो
नथी?
हे जीव! तारा आत्माने मोक्षपंथे स्थापवा माटे
तारा उपयोगने निजस्वरूपमां जोड.... ने परनो संबंध
तोड.