Atmadharma magazine - Ank 238
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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श्रावण: २४८९ : १प :
केवळी भगवान जेवा ज्ञानने आनंदनो नमूनो
(प्रवचनसार उपरना ज्ञानमहिमाभरपूर सुंदर प्रवचनोमांथी)
प्रवचनसारमां अतीन्द्रिय ज्ञान ने अतीन्द्रिय आनंदनुं जे
महिमावंत वर्णन कुंदकुंदाचार्यदेवे बताव्युं छे तेना उपर विवेचन वखते
गुरुदेवे खूबज प्रमोदथी ने बहुमानथी कह्युं के वाह! कुंदकुंद तो कुंदकुंद ज
छे. स्वावलंबी ज्ञाननो अदभुत मार्ग श्री कुंदकुंदस्वामीए बताव्यो छे.
आवा ज्ञानानंदस्वभावनी उपादेयता नक्की करतां सम्यक्त्व थाय छे; ने
सम्यक्त्व थतां केवळी भगवान जेवा ज्ञान ने आनंदनो नमूनो
आत्मामां आवी जाय छे.
चैतन्यभगवान आत्मा ज्ञानस्वरूप छे, ते अतीन्द्रिय छे. ईन्द्रियोथी पार छे.
ईन्द्रियो जड अचेतन छे, तेनामां ज्ञानस्वभाव नथी. जेनामां ज्ञान नथी एवी जडईन्द्रियो
आत्माने ज्ञाननुं साधन केम थाय? ईन्द्रियोमां एवी ताकात नथी के आत्माने अतीन्द्रिय ज्ञाननुं
साधन थाय.
ईन्द्रियोने जे ज्ञाननुं साधन माने तेनुं वलण ईन्द्रियो तरफ ज रहे, अतीन्द्रियस्वभाव तरफ
तेनुं वलण न जाय. ने परथी निरपेक्ष थईने स्वभावने ज साधन न बनावे त्यां सुधी अतीन्द्रियज्ञान
प्रगटे नहि, अतीन्द्रियज्ञान वगर अतीन्द्रिय सुख होय नहि.
भाई, तारा अतीन्द्रिय चिदानंद स्वभावमां ईन्द्रियोनो प्रवेश नथी; ईन्द्रियोने अवलंबीने
वर्ततुं ज्ञान पण चैतन्य स्वभावमां प्रवेशी शक्तुं नथी. अरे, अतीन्द्रिय ज्ञान पासे ईन्द्रियज्ञान तो
तूच्छ छे. एना बहारना जाणपणाना अभिमान शा?
ईन्द्रिय वगेरे परनी अपेक्षा राख्या विना मात्र