श्रावण: २४८९ : १७ :
छेल्लुं तीव्र दुःख तेओ वेदी रह्या छे. ने अहीं तने छेल्लामां छेल्ला उत्कृष्टमां उत्कृष्ट एवा आनंदनी
वार्ता सन्तो पासेथी सांभळवा मळी छे, तो आवा उत्कृष्ट ज्ञान–आनंद स्वभावने प्रतीतमां ले. तारा
स्वभावनो महिमाशुं कहेवो? प्रभुता परिपूर्ण तारामां भरी छे, तुं ज महाप्रभु छो. बहारमांथी तारे शुं
लेवुं छे? तारी प्रभुतामां ज तारा ज्ञान–आनंदनी पूर्ण खाण भरी छे. ते ज तारा सुखनुं ने ज्ञाननुं
कारण छे, माटे तेमां जा. आ रीते परद्रव्योथी अत्यंत निरपेक्ष नेएकला स्वद्रव्यना ज अवलंबने तारा
अतीन्द्रिय ज्ञान ने आनंद प्रगटी जशे.
अतीन्द्रिय ज्ञाननुं सामर्थ्य एवुं अचिंत्य छे के पोते पोतमां स्थिर रहीने समस्त पदार्थोने
पोतामां जाणी ल्ये छे. पूर्ण ज्ञानशक्ति खीली तेमां बधा ज्ञेयो पोतानी त्रणकाळनी पर्यायो सहित
सीधा वर्तमान–प्रत्यक्ष एक साथे जणाय छे. ज्ञान अने ज्ञेय बंनेनुं सामर्थ्य वर्तमानमां पूरुं छे. बधा
ज्ञेयोने एक समयमां पूरुं निमित्त थवानी ज्ञाननी ताकात छे, पण जीव पोतानी ताकातनो विश्वास
करतो नथी. ज्यां आवुं ज्ञान ज्ञानमां ठर्युं त्यां तेनी पूरी ताकात एवी ऊघडी के बधा पदार्थो ज्ञेयपणे
तेमां अर्पाई जाय छे. ज्यां आवुं ज्ञान होय त्यां ज पूरुं सुख होय तेथी आचार्यदेवे फरीफरीने आ
ज्ञाननो अचिंत्य महिमा अने प्रशंसा करीने तेने उपादेय बताव्युं छे.
त्रिकाळी पर्यायो सहित ज्ञेयपदार्थो तो जगतमां विद्यमान छे. ज्ञेयपदार्थमां त्रणकाळनी पर्यायनुं
सामर्थ्य वर्तमान विद्यमान छे, अने अहीं केवळज्ञानमां तेने जाणवानुं सामर्थ्य खीली गयुं छे, तो ते
केवळज्ञानमां शुं न जणाय? –बधुं ज जणाय, प्रत्यक्ष जणाय, एक साथे जणाय, राग वगर जणाय.
जुओ, आ ज्ञानसामर्थ्यने जेणे जाण्युं तेणे बधुं जाण्युं.
आ ज्ञानसामर्थ्यनो निर्णय शी रीते करवो? वर्तमानमां जे ज्ञाननो अंश प्रगट वर्ते छे ते
ज्ञानने अंतरना स्वभावनी सन्मुख करतां पूर्ण साथे अंशनी एकता थईने पूर्णनी प्रतीत प्रगटे छे, ने
पूरानी जातनो अतीन्द्रिय अंश प्रगटे छे, तेमां अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन पण भेगुं छे. केवळी
भगवान जेवा ज्ञानने आनंदनो अंशे नमुनो समकितीने आवी गयो छे. ज्ञानपर्यायने अंतरमां
वाळीने स्वसन्मुख करवाथी ज आवा ज्ञानस्वभावनी प्रतीत थाय छे, ए सिवाय जड ईन्द्रियोमां,
रागमां के ईन्द्रियो तरफना ज्ञानमां एवी ताकात नथी के ज्ञानसामर्थ्यने प्रतीतमां ल्ये.
भाई, तारा ज्ञानने अंतरमां लई जा.... बहिरलक्ष पलटावीने अंर्तलक्ष कर. बस! आ ज
सम्यग्दर्शननो उपाय छे. स्वभावनुं माहात्म्य लक्षमां लईने अंतरमां जा. बीजुं कांई करवानुं नथी.
चिदानंदने भेटतां ज्ञानपर्याय ऊघडे; रागनुं भेटतां ज्ञानपर्याय न ऊघडे, ज्ञानपर्याय ज्यां
निजस्वभाव तरफ वळी त्यां तेमां कांई झंझट नथी; ते ज्ञान अतीन्द्रिय आनंदमय अमृतना भोजनथी
भरेलुं छे.
परभावमां मारुं सुख नथी, सुख मारुं मारा ज्ञानस्वभावमां ज छे, मारो आत्मा स्वयं ज
ज्ञानने सुख स्वभावथी भरेलो छे–एवी द्रढ प्रतीत थतां जगतना सर्व पदार्थोमांथी सुखबुद्धि छूटी
जाय, एटले पराश्रयबुद्धि छूटी जाय, ने अंतर्मुख वलण थाय. अहो, आ वात समजीने पोते पोताना
अंतरमां उतरवा जेवुं छे. अतीन्द्रिय शांति मेळववानी आ एक ज रीत छे.
ज्ञाननो स्वभाव जाणवानो छे; जाणवामां आकुळता नथी; त्रिकाळी पदार्थने जाणवामां
समभाव छे. भूतकाळना पर्यायो के भविष्यना पर्यायो–तेने पण ज्ञान पोतानी निर्विघ्न अचिंत्य महान
शक्तिवडे जाणी ले छे.
ज्ञाननी अचिंत्य प्रभुशक्ति छे, ते ज्यां निर्विघ्न खीली गई त्यां सर्व ज्ञेयोने पहोंची वळे छे. जो
एम न जाणे तो ते ज्ञाननी दिव्यता शी? वर्तमान करतां