Atmadharma magazine - Ank 238
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म: २३८
भूत भाविने जरापण अस्पष्ट जाणे एवुं नथी. त्रिकाळने एक साथे अक्रमे–स्पष्टपणे जाणी ले छे.
ज्ञाननी एवी दिव्य शक्ति खीली गई के बधाय ज्ञेयोने पोताना प्रति नियत करे छे. दिव्य ज्ञान कहेवुं
ने ते ज्ञान कोईने पण न जाणे एम कहेवुं– तो ते ज्ञाननी दिव्यता शी? अमुकने जाणे ने अमुकने न
जाणे तो ज्ञाननो महिमा खंडित थई जाय छे.
अंत वगरनुं जे आकाश–तेनी पराकाष्टाने पण पहोंची वळनारुं ज्ञान–तेना अगाध महिमानी
शी वात!! अनंत अलोक करतांय जेनी गहनता वधु ते ज्ञानना गहन महिमानी शी वात!!
* ज्ञान अलोकने नथी जाणतुं–एम नथी.
* ज्ञान अलोकनो छेडो जाणे छे–एम पण नथी.
* अलोकनी अनंतताने जेम छे तेम ज्ञान जाणे छे, तेमां ज्ञाननी महिमानी अनंतता छे.
* ज्ञानना महिमानी अनंतता जाण्या वगर आ वात बेसवी मुश्केल छे.
* अलोकनी अनंतता कहे पण तेना करतांय ज्ञानसामर्थ्यनी अनंतता मोटी छे–ते न भासे तो,
सर्वज्ञ अलोकने जाणे ते वात बेसे नहि.
ज्ञानमां जाणवानो स्वभाव छे ते कोने न जाणे? जेम अलोकनो क्षेत्रस्वभाव छे, तो तेनी
क्यांय कोई क्षेत्रमां नास्ति नथी, तेम ज्ञाननो जाणवानो स्वभाव छे, तेमां क्यांय कोई ज्ञेयने
जाणवानी नास्ति नथी, बधाय ज्ञेयोने जाणे छे; जो न जाणे तो ते ज्ञान पूरुं नथी.
जेम द्रव्य पलटीने बीजुं न थाय,
क्षेत्रप्रदेश पलटीने बीजो न थाय,
तेम पर्याय पण ते काळनी पलटीने बीजा काळनी न थाय, ने गुणनो भाव पलटीने बीजा
गुणरूप न थाय.
–आवो वस्तुनो स्वभाव छे. तेने जेम छे तेम जाणवानो ज्ञाननो स्वभाव छे.
आ लोकनी चारे तरफ अनंत... अनंत... अनंत अलोक पथरायेलो छे–जेनो क्यांया छेडो नथी.
छतां ज्ञान तेनी अनंतताने प्रत्यक्ष जाणी ल्ये छे. तेने लक्षमां लेनार ज्ञानपर्यायनुं दिव्य सामर्थ्य
केटलुं? विकल्पवडे ए ज्ञानसामर्थ्यनो पार पामी न शकाय.
आ लोक ३४३ राजु प्रमाण, ते पूरो थया पछी अलोक.... पछी शुं? –के अलोक पछी?
अलोक.... सर्वत्र आकाश पथरायेलुं छे– क्यांय नास्ति नथी आवती.... क्यांय छेडो नथी आवतो.
आवा अनंत अलोकने पण ज्ञान पहोंची वळे–तो ते ज्ञाननी ताकात केटली? – तेमां न जाणे एवुं
क्यांय न आवे.... जाणे, जाणे.... ने जाणे! आवुं अतीन्द्रिय ज्ञानसामर्थ्य विचारधारामां ल्ये तो
स्वभाव उपर लक्ष जईने सम्यक्त्व थाय.
अतीन्द्रिय ज्ञान उपादेय छे तेना निर्णयमां सम्यक्त्व थाय छे. टीकामां ज्ञाननी दिव्यता कहेवामां
आचार्यदेवने ज्ञानमहिमानो कोई अचिंत्य उल्लास आव्यो छे.
अरे, दिव्य ज्ञान ने दिव्य आनंद जेमने खीली गया छे एवा अरिहंतना आत्माने ओळखे तो
ज्ञानना अचिंत्य सामर्थ्यनी खबर पडे, तेने ज्ञाननो अनुभव थाय, सम्यग्दर्शन थाय ने
केवळीभगवानना ज्ञान ने आनंदनो नमुनो लेतो लेतो ते मोक्षना पंथे जाय....