Atmadharma magazine - Ank 239
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म: २३८
किंमत न थात के जेवी वैराग्यद्वारा मेळवेला विजयनी थई. – तो जगत तेने मात्र एक राजा तरीके
जोत, भगवान तरीके नहीं.
आ रीते क्रोधद्वारा सामाने हरावीने मेळवातो विजय ए साचो विजय नथी. चैतन्यनी अडोल
साधनाना बळे शांतिद्वारा मेळवातो विजय ए ज साचो विजय छे. आ वात समजे ते क्रोधनो विजेता
बने. माटे, मुमुक्षुवीरनो मंत्र छे के–
‘शांतिद्वारा विजय’
गमे ते परिस्थिति आवे पण हुं क्रोधित न थाउं ने मारी अडग स्वरूपसाधनानी
शांतिमांथी हुं न डगुं, मारी आराधनामां (स्वरूपसाधनामां) हुं अडोल रहुं, तो पछी कोनी
ताकात छे विश्वमां के मने हरावे! अकषायी शांतिद्वारा कषायोने अने कर्मोने जीतीने हुं मोक्षनो
विजेता बनीश.
–आ छे मुमुक्षुवीरनो जीवनमंत्र!
गुप्तज्ञान
आत्मस्वभावनी सन्मुख थतां समभावरूप
आत्मानंद थाय छे. ते स्वभावने भगवाननी वाणीए
प्रकाशित कर्यो छे. स्वानुभव ते संसारथी तारनार छे,
अने स्वानुभवरूप जे मोक्षमार्ग तेनुं गुप्तज्ञान अनुभवी
ज्ञानी सन्तोए प्रगट कर्युं छे.
– अष्टप्रवचन
सम्यग्दर्शन
मोक्षार्थीने सौथी पहेलां सम्यग्दर्शन आवश्यक छे;
सम्यग्दर्शन वगर मोक्षमार्गमां एक पगलुं पण जवातुं
नथी. सम्यग्दर्शन वगरनुं बधुंय नीरस छे, निःसार छे;
माटे सम्यग्दर्शननी श्रेष्ठता जाणीने तेनो प्रयत्न मुमुक्षुए
कर्तव्य छे.
– अष्टप्रवचन