Atmadharma magazine - Ank 239
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म: २३९
प्रयाण करी रह्या छे ते जीवनध्येयमां गुरुदेवना उपदेशना प्रतापे संतोनी छायामां तेओ शीघ्र सफळ
थाओ–एम ईच्छीए छीए.
आजे पू. गुरुदेवना महान प्रतापे जिनशासननो प्रभाव दिनप्रतिदिन वधतो जाय छे...
अवनवा प्रभावनाना प्रसंगो बनता जाय छे... अने गुरुदेवना अध्यात्मरसपोषक उपदेशथी प्रभावित
थईने अनेक जीवो संत केरी शीतल छांयडी मां आत्महितनो उद्यम करी रह्या छे. एवा ज उदे्शपूर्वक
एक साथे आठ–आठ कुमारिका बहेनोना आजीवन–ब्रह्मचर्यना प्रसंगो बनी रह्या छे. आजीवन
ब्रह्मचारी रहेवा उपरांत जे उदे्शथी ने जे लक्षथी आ करवामां आवे छे ते उदे्शनी ने ते लक्षनी खास
महत्ता छे, अने तेमांय ज्ञानीओना सत्संगना साक्षात् योगमां रहीने आ बधुंय थाय छे–ते सौथी मोटी
विशेषता छे.
ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञाना आगला दिवसथी ज दीक्षामहोत्सव जेवुं उल्लासकारी वातावरण नजरे
पडतुं हतुं. बधा बहेनोना कुटुंबीजनो आ प्रसंगे सोनगढ आव्या हता; ठेरठेर मंडप बंधाया हता
ने सौ भादरवा सुद एकमनी राह जोता हता. एकमनी सवारमां जिनमंदिरमां ब्र. बहेनो सहित
समूहपूजन थयुं... त्यारबाद आजना प्रसंग निमित्ते शास्त्रजीनी रथयात्रा नीकळी जेमां बधा
बहेनो हाथमां शास्त्र लईने फर्या हता. रथयात्रा प्रवचनमंडपमां आवी हती ने गुरुदेवना प्रवचन
पछी ब्रह्मचर्यदीक्षानी विधि थई हती. प्रतिज्ञा लेवा माटे एक साथे आठ वीरबाळाओ ज्यारे
गुरुदेव समक्ष ऊभी थई ते वखतनुं द्रश्य वैराग्यप्रेरक हतुं. बधी बहेनोना वडीलोनी
अनुमतिपूर्वक गुरुदेवे ब्रह्मचर्यनी दीक्षा आपतां कह्युं के “आजे आ आठ दीकरीओ ब्रह्मचर्य ल्ये
छे ते सारूं काम करे छे. कुल ३७ बहेनो थया छे. १४ वर्ष पहेलां छ बहेनो थया हता, पछी सात
वर्ष पहेलां १४ बहेनो थया हता, वच्चे बीजा केटलाक बहेनोए बंधी लीधी हती, ने आजे आ ८
बहेनो वधे छे. आम १४ वर्षमां ३७ बहेनो बाळ ब्रह्मचारी थाय छे. आ बधुं आ बे बहेनोनो
(बेनश्रीबेननो) जोग छे तेने लईने छे. बधायना मातापितानी ने वडीलोनी संमतिपूर्वक आ
ब्रह्मचर्य देवाय छे.” – आम कहीने सभाना हर्ष वच्चे गुरुदेवे आठ कुमारिका बहेनोने
ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा करावी हती.
भारतना ईतिहासमां विरल एवी ब्रह्मचर्यदीक्षाना आवा प्रसंगो गुरुदेवना प्रतापे
अवार–नवार बन्या करे छे. विषयकषायोथी भरेला अत्यारना हडहडता वातावरणमां आवा
प्रसंगो संसारने चुनोती आपे छे के अरे जीवो! सुख विषयकषायोमां नथी, सुख तो
अध्यात्मजीवनमां छे... सुखने माटे विषयोने ठोकर मारीने, संतनी छायामां जई
अध्यात्मसाधनामां जीवनने जोडो.
आ बधा बहेनोए आत्महितने माटे जीवनसमर्पण करवानुं जे साहस प्राप्त कर्युं छे तेमां,
परमपूज्य गुरुदेवना आत्मस्पर्शी उपदेशनो तो मुख्य प्रभाव छे ज, ते उपरांत एवुं ज महत्वनुं
एक बीजुं पण कारण छे, अने ते छे–पू. बे बहेनोनी शीतलछाया ने वात्सल्यभरी हूंफ! परमपूज्य
बेनश्री चंपाबेन तथा परमपुज्य बेन शांताबेन–ए बंने बहेनोनुं धर्म रंगथी रंगायेलुं सहज जीवन
तो नजरे जोवाथी ज जिज्ञासुने ख्यालमां आवी शके. ए बंने