Atmadharma magazine - Ank 240
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आसो: २४८९ : ९ :
सम्यक्त्वना
उपायसूचक
प्रश्नोत्तर
(श्री प्रवचनसार गा. ८० ना प्रवचनोमांथी)
प्रश्न:– जीवे अनादिकाळथी शुं प्राप्त नथी कर्युं?
उत्तर:– जीवे अनादिकाळथी सम्यग्दर्शन प्राप्त नथीं कर्युं.
प्रश्न:– ते सम्यग्दर्शन केम थाय?
उत्तर:– अरिहंत भगवान जेवा पोताना शुद्ध आत्माने जाणवाथी सम्यग्दर्शन थाय छे.
प्रश्न:– आत्माने जाणे तो ज अरिहंतने यथार्थपणे जाणे–एम न कहेतां, ‘अरिहंतने जे जाणे ते
पोताना आत्माने जाणे’ एम केम कह्युं?
उत्तर:– वास्तविक निश्चयथी तो एम ज छे के जे पोताना आत्माने जाणे छे ते ज अरिहंत–सिद्ध
वगेरेने यथार्थपणे जाणे छे; परंतु अहीं आत्माने जाणवाना प्रयत्नमां जे जीव वर्ती रह्यो छे एवा
जीवने प्राथमिक भूमिकामां विकल्प वखते केवुं ध्येय होय छे ते बताव्युं छे; अने ए रीते पहेलां ध्येयनो
निर्णय करीने पछी अंतर्मुख थईने पोताना आत्माने तेवो ज जाणे छे, एनुं नाम सम्यग्दर्शन छे. आ
रीते सम्यग्दर्शनना प्राथमिक अभ्यासवाळा जीवनी वातहोवाथी, अने ते जीव अरिहंतना द्रव्य–गुण–
पर्यायने लक्षमां लईने तेना द्वारा पोताना आत्मानो निश्चय करे छे तेथी, एम कह्युं के ‘जे जीव
अरिहंतने जाणे छे ते पोताना आत्माने जाणे छे.’
प्रश्न:– अरिहंतने जाण्या वगर आत्मा जाणी शकाय के नहीं?
उत्तर:– ना; भगवान अरिहंतदेव सर्वज्ञ छे, ते सर्वज्ञना निर्णय वगर ज्ञानस्वभावी आत्मानो
निर्णय थई शकतो नथी.
प्रश्न:– अरिहंतदेव तो पर छे, तेनुं आपणे शुं काम छे?
उत्तर:– अरिहंतदेव पर छे–ए वात साची, पण आत्मानी पूर्णदशा तेमने प्रगटी गई छे एटले
तेमनुं ज्ञान थतां आ आत्माना पूर्णस्वभावनुं पण ज्ञान थाय छे, केमके निश्चयथी जेवो अरिहंतनो
आत्मा छे तेवो ज आ आत्मा छे, तेमां कांई फेर नथी. अरिहंतनो निर्णय कांई अरिहंतने माटे नथी
करवो, पण पोताना ध्येयनो निर्णय करवा जतां तेमां अरि–