Atmadharma magazine - Ank 240
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म: २४०
हंतना स्वरूपनो निर्णय आवी जाय छे. जेने अरिहंतना स्वरूपनो निर्णय नथी तेने खरेखर पोताना
ध्येयनो ज निर्णय नथी, पोताना आत्मानो ज निर्णय नथी; एटले ते तो मिथ्याद्रष्टि ज छे.
प्रश्न:– अरिहंतने जाणतां आत्मानुं ज्ञान कई रीते थाय छे?
उत्तर:– सम्यक्त्व सन्मुखी जीवने पहेलां एवी विचारणा जागे छे के आत्मानी पूर्ण ज्ञान–
आनंददशाने पामेलो जीव केवो होय? एटले विचारदशाथी ते अरिहंतदेवनुं स्वरूप ओळखे छे; ते
स्वरूप ओळखतां ज तेने कुदेवादिनुं सेवन तो छूटी गयुं छे, ज्ञान–आनंदस्वरूपथी विपरीत एवा
रागादि भावोमां आदरबुद्धि छूटीने, स्वरूपमां आदरबुद्धि थई छे. अने ए रीते ज्ञानानंद स्वरूपनी
आदरबुद्धिना जोरे विकल्पभूमिकाथी जुदो पडीने, अतीन्द्रिय स्वभावनी सन्मुखताथी पोताना
आत्माने जाणे छे. आ रीते अंतर्मुख थईने जेणे आत्माने जाण्यो तेणे ज सर्वज्ञनी खरी स्तुति करी,
एटले तेणे ज केवळीभगवानने खरेखर ओळख्या. (जुओ, समयसार गा. ३१) अरिहंतना
स्वरूपनी विचारधारावडे निज स्वरूपनो निर्णय करीने जे अंतर्मुख स्वरूपमां झूकी गयो तेने आत्मानुं
ज्ञान थयुं. –आ रीते अरिहंतने जाणतां, आत्मानुं ज्ञान थाय छे.
प्रश्न:– सम्यग्द्रष्टि देडकांने अरिहंतनो निर्णय कई रीते होय छे?
उत्तर:– सम्यग्द्रष्टि देडकांने पण अरिहंतना स्वरूपनो निर्णय जरूर थई गयो छे; ‘अरिहंत’
एवा चार अक्षरनुं ज्ञान के भाषा तेने भले न हो, पण पोताना अंर्तवेदनमां अरिहंतना स्वरूपनो
निर्णय पण तेने आवी ज गयो छे. हुं ज्ञान छुं, राग के देह हुं नथी; अंतरमां आनंदनुं वेदन थाय छे ते
उपादेय छे, रागनुं वेदन ते हेय छे–आम ज्यां पोताना वेदनथी नक्की कर्युं त्यां ते देडकाने एम पण
नक्की थई गयुं के आवा ज्ञान ने आनंदनी पूर्णदशा खीली जाय ते ज मारे उपादेय छे; अरिहंतना
स्वरूपथी विपरीत एवा रागादि मारे उपादेय नथी. आ रीते अरिहंतनुं स्वरूप जेवुं छे तेवुं तेना
अभिप्रायमां आवी गयुं छे, ने तेनाथी विपरीत अभिप्रायनो तेनेअभाव छे.
प्रश्न:– अरिहंतना निर्णयमां ‘तत्त्वार्थश्रद्धान’ कई रीते आवी जाय छे?
उत्तर:– अरिहंतभगवानने पूर्ण ज्ञान–आनंद प्रगटी गया छे, रागादि सर्वथा छूटी गया छे;
पहेलां तेमने पण रागादि हता, पण पछी भेदज्ञान वडे शुद्ध आत्माने ज उपादेय जाणीने, अने
रागादिने हेय समजीने, सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रवडे तेमणे अरिहंतपंदने साध्युं; जेणे अरिहंतना
आवा स्वरूपनो निर्णय कर्यो तेनी श्रद्धामां एम पण आवी गयुं के मारो जीवस्वभाव अरिहंत
भगवान जेवो छे, तेमने जे पूर्ण ज्ञानानंद दशा प्रगटी ते ज मारे उपादेय छे एटले के मोक्षतत्त्व
उपादेय छे; तेमने जे रागादि छूटी गया ते मारे पण छोडवा जेवा छे एटले आस्रव–बंधतत्त्वो हेय छे;
मोक्ष दशा प्रगट करवानो ने आस्रव–बंधना नाशनो उपाय सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र छे ते मारे करवा
जेवा छे एटले के संवर–निर्जरा करवा जेवा छे;–आ प्रमाणे अरिहंतना निर्णयमां तत्त्वार्थश्रद्धान पण
समायेलुं ज छे.
प्रश्न:– पहेलां आत्माने जाणवो, के पहेलां अरिहंतने जाणवा?
उत्तर:– बेमांथी एकनुं यथार्थ ज्ञान करवा जतां बीजानुं ज्ञान पण थई ज जाय छे, केमके
परमार्थे आत्मा अने अरिहंतना स्वरूपमां कांई फेरफार नथी. आत्मानुं स्वरूप न जाणनार अरिहंतना
स्वरूपने पण नथी जाणतो, अने अरिहंतना वास्तविक स्वरूपने