आसो: २४८९ : ११ :
(द्रव्य–गुण–पर्यायथी) जाणनार पोताना आत्माने पण जरूर जाणे ज छे. आ रीते अरिहंतना
स्वरूपनुं ज्ञान अने पोताना आत्मानुं ज्ञान ए बंनेनी संधि समजवी.
प्रश्न:– आत्मानी प्राप्तिनो उपाय शुं छे?
उत्तर:– आत्मअनुभूतिरूप सम्यग्दर्शनवडे, अनंतकाळमां पूर्वे नहि थयेली एवी आत्मप्राप्ति
थाय छे.
प्रश्न:– ते शुद्धात्मअनुभूति माटे शुं करवुं जोईए?
उत्तर:– पहेलां तो अरिहंतदेवना आत्माने द्रव्यथी–गुणथी ने पर्यायथी ओळखीने, तेवा ज
स्वभाववाळा पोताना आत्माने जाणवो, अने ए रीते आत्माने जाणीने, द्रव्य–गुण–पर्यायना भेदना
विचार छोडीने, पर्यायने अंतर्मुख करतां, विकल्पातीत एवी शुद्ध आत्मानी अनुभूति थाय छे, आ ज
सम्यग्दर्शननी रीत छे.
प्रश्न:– क्यो जीव सम्यग्दर्शनना आंगणे आव्यो कहेवाय?
उत्तर:– अरिहंत जेवा पोताना आत्माने जाणीने, तेना मनननी धारामां अप्रहितपणे जे वर्ते
छे ते जीव सम्यग्दर्शनना आंगणे आव्यो कहेवाय.
प्रश्न:– आंगणे आव्या पछी अंदर प्रवेश कई रीते करवो?
उत्तर:– अरहंत भगवान जेवा पोताना जे स्वरूपनो निर्णय विचारधाराथी क््यो छे, ते
स्वरूपमां अंतर्मुख थवाना वारंवार अतिद्रढ अभ्यासवडे, पर्यायने तेमां लीन (अभेद–एकाकार)
करीने अनुभव करवो ते ज स्वभावमां प्रवेशवानी रीत छे, ते अनुभवनी निर्विकल्प दशामां द्रव्य–
गुण–पर्यायना भेदनो विचार पण नथी होतो, त्यां द्रव्य–गुण–पर्यायनी अभेदताना सहज आनंदनुं
वेदन होय छे.
प्रश्न:– सम्यग्दर्शनना आ ज उपायने ‘समयसार’ नी भाषामां करवो होय तो?
उत्तर:– समयसारना पहेला ज कळशमां–
‘स्वानुभूत्या चकासते’ एम कहीने शुद्धात्मानी प्राप्तिनो उपाय बताव्यो छे. आत्मा पोतानी
स्वानुभूतिथी ज प्रकाशमान छे, रागवडे तेनो अनुभव नथी थतो, पण अंतर्मुख थईने स्वानुभव वडे
ज ते अनुभवमां आवे छे.
अथवा– ‘भूयत्थमस्सिदो खलु सम्माइठ्ठी हवइ जीवो’
–आमां सम्यग्दर्शननी रीत बतावतां कुंदकुंदस्वामी स्पष्ट कहे छे के भूतार्थस्वभावनो आश्रय
करनार जीव सम्यग्द्रष्टि छे. ‘भूतार्थस्वभावनो आश्रय’ कहो, ‘स्वानुभूति’ कहो, के ‘अरिहंत जेवा
पोताना आत्मानुं ज्ञान’ कहो, –ए त्रणेनो एक ज भाव छे, ने ते ज सम्यग्दर्शननो उपाय छे.
प्रश्न:– आगमनुं विधान शुं छे? संतोनुं फरमान छे?
उत्तर:– अंतर्मुख थईने शुद्धआत्मानी अनुभूति करवी ते ज आगमनुं विधान छे, ते ज संतोनुं
फरमान छे. केमके आ ज्ञानस्वरूप आत्मा पोते अंतर्मुख थईने ज्ञानस्वरूपे परिणमे ते ज मोक्षनो हेतु
छे, ए सिवाय अन्य जे कांई (पाप के पुण्य) छे ते बंधनो हेतु छे, माटे ज्ञानस्वरूप थवानुं एटले के
शुद्धआत्मानी अनुभूति करवानुं ज आगममां विधान छे, ते ज आगमनुं ने संतोनुं फरमान छे. जे
जीव रागने कर्तव्य माने छे के मोक्षनुं साधन माने छे तेने तो हजी आगमना विधाननी के संतोना
फरमाननी ज खबर नथी.
प्रश्न:– मोक्षतत्त्वनी प्रतीत करनार सम्यग्द्रष्टि छे–ए कई रीते?
उत्तर:– आस्रव–बंधरूप विकारथी रहित एवुं परिपूर्ण मोक्षतत्त्व जेणे प्रतीतमां लीधुं तेने विकार–