: १२ : आत्मधर्म: २४०
रहित एवो शुद्धआत्मस्वभाव प्रतीतमां आवी ज जाय छे, एटले तेने मिथ्यात्वनो छेद थईने
सम्यग्दर्शन थाय छे; माटे मोक्षतत्त्वनी प्रतीत करनार सम्यग्द्रष्टि छे. खरेखरी मोक्षतत्त्वनी प्रतीत
यथार्थ प्रतीत थती नथी.
अरिहंतदेवनी ओळखाण कहो के मोक्षतत्त्वनी प्रतीत कहो, ते ओळखाण के प्रतीत करवा
जनारने आत्मस्वभावमां अंतर्मुखता थईने सम्यग्दर्शन थाय छे. माटे अरिहंतनुं स्वरूप बराबर
जाणवुं जोईए.
प्रश्न:– अमारुं भेजुं (मगज) नानुं, तेमां अरिहंत भगवाननी आवडी मोटी वात केम बेसे?
उत्तर:– अरे भाई! तारो आत्मा नानो नथी, अरिहंत भगवान जेवा ज सामर्थ्यवाळो मोटो
तारो आत्मा छे; तारा ज्ञाननुं भेजुं एटले के तारा ज्ञाननी ताकात एवडी मोटी छे के अरिहंत
भगवानने पण ते पोतामां ज्ञेयपणे समावी द्ये. माटे तारा आवा ज्ञानसामर्थ्यनी प्रतीत करीने
अंतर्मुख था;–एम करवानी अरिहंत जेवो ज तारो आत्मा तने स्वानुभवथी जणाशे. ताराथी थई शके
एवुं आ कार्य छे.
प्रश्न:– सम्यग्दर्शन सक्रिय छे के निष्क्रिय?
उत्तर:– विकल्पोने करवारूप क्रियानो तेमां अभाव होवाथी ते निष्क्रिय छे, अने पोताना
स्वरूपनी प्रतीति करवारूप क्रिया तेमां होवाथी ते सक्रिय छे.
प्रश्न:– मोहमल्लने शीघ्र जीतवानो उपाय शुं छे?
उत्तर:– जेवा अरिहंत परमात्मा छे तेवो ज परमार्थे मारो आत्मा छे–आवी परमार्थ द्रष्टिथी
सम्यग्दर्शन प्रगट करवुं ते ज मोहना नाशनो मूळ उपाय छे.
प्रश्न:– जेने पोताना आत्मामां मोहना नाशनो आवो उपाय प्रगट्यो होय तेने शुं थाय?
उत्तर:– तेने एम निःशंक्ता थई जाय के मोहना नाशनो उपाय में मेळवी लीधो छे, हवे हुं
अल्पकाळमां ज मोहने निर्मूळ करी नांखीश. मोहना नाशनो उपाय एटले सम्यग्दर्शन थतां ज
आत्माना आनंदना वेदन सहित जीवने अंदरथी एवो झणकार आवी जाय छे के बस, सिद्धपदनो मार्ग
हाथ आवी गयो..... संसारनो हवे छेडो आवी गयो..... अनादिना दुःखना दरियामांथी नीकळीने हवे
सुखना समुद्रमां में प्रवेश कर्यो.
प्रश्न:– पोताना सम्यग्दर्शननी पोताने खबर पडे?
उत्तर:– हा, अंतरमां अतीन्द्रिय आनंदना आह्लादपूर्वक–स्वसंवेदनथी पोताने निःसंदेहपणे
पोताना सम्यग्दर्शननी खबर पडे छे.
आराधनानो उत्साह
सम्यक्त्वादिनी आराधनानी भावना करवी, आराधना प्रत्येनो उत्साह
वधारवो, आराधक जीवो प्रत्ये बहुमानथी प्रवर्तवुं, ईत्यादि सर्वप्रकारना उद्यम वडे
आत्माने आराधनामां जोडवो, –ए मुनिओनुं तेमज श्रावकोनुं सर्वेनुं कर्तव्य छे.
आराधनाने पामेला जीवोनुं दर्शन अने सत्समागम आराधना प्रत्ये उत्साह जगाडे छे.