Atmadharma magazine - Ank 240
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म: २४०
णमतुं एवुं ज्ञान ज छे. आम जाणीने हे भव्य जीव! तुं ज्ञानस्वभावमां ज रत था, ने रागनी रुचि
छोड. रागनी जेने रुचि छे तेने कर्मबंधननी ज रुचि छे, तेने कर्मथी छूटकारानी रुचि नथी. कर्मथी
छूटकारानी रुचि होय तेने बंधना कारण केम गोठे? जे रागने धर्मनुं साधन माने छे ते मिथ्याद्रष्टि
जीव रागनो ज पोषक छे ने धर्मनो अनाराधाक छे, विराधक छे, संसारना ज कारणने ते सेवी रह्यो छे.
कर्म सर्वमपि सर्वविदो यद् बंध साधनमुशन्त्यविशेषात्।
तेन सर्वमपि तत्प्रतिषिद्धं ज्ञानमेव विहितं शिवहेतुः।। १०३।।
मोक्षमार्गना प्रधानउपदेशक एवा भगवान सर्वज्ञ देवोए शुभ के अशुभ समस्त कर्मने तफावत
वगर निषेध्युं छे; परंतु एम नथी के अशुभने तो सर्वथा निषेध्युं होय ने शुभने कथंचित् आदरणीय
पण कहयुं होय! धर्मीनेय अमुक भूमिकामां शुभ होय ते जुदी वात छे परंतु ते शुभनेय भगवाने
बंधनुं ज कारण कहीने, मोक्षमार्गमांथी तेनो निषेध ज कर्यो छे; अने ते रागथी रहित एवुं जे ज्ञान ते
ज मोक्षनुं कारण छे एम भगवानने फरमाव्युं छे.
जुओ, आ मोक्षमार्ग साधवा माटे भगवाननुं फरमान! मुनिने के श्रावकने पण जेटलुं
ज्ञानपरिणमन छे तेटलो ज मोक्षमार्ग छे, जेटलो शुभ के अशुभ राग छे ते कांई मोक्षमार्ग नथी.
आ रीते मोक्षमार्गमांथी समस्त कर्मनो निषेध छे.
प्रश्न:– जोआम छे तो मुनिओ तथा श्रावकोने कोनुं शरण रह्युं? शुभरागनो पण मोक्षमार्गमांथी
निषेध ज कर्यो, तो हवे निष्कर्म अवस्थामां कोनुं शरण रह्युं? कोना आधारे हवे मोक्षमार्गने साधवो? तेना
उत्तरमां आचार्यदेव कहे छे के अरे जीव सांभळ! शुभ अशुभ बंने कर्मोथी रहित अवस्थामां तो धर्मात्माओ
निर्विकल्प चैतन्यरसना अमृतने अनुभवे छे, तेओ कांई अशरण थई जता नथी, परंतु चिदानंदस्वभावना
आश्रये ज्ञानमयभावे परिणमता थका तेओ परम ज्ञानामृतने पीए छे.
समयसारनाटकमां आ संबंधमां शंका–समाधान कर्युं छे–
“शिष्य कहे स्वामी तुम करणी अशुभ शुभ,
कीनी है निषेध मेरे संशय मनमांही है;
मोक्षके सधैया ज्ञाता देशविरति मुनिश,
तिनकी अवस्था तो निरावलंब नांही है.
शिष्य कहे छे: हे स्वामी! तमे अशुभ तेमज तेमज शुभ बंने क्रियानो मोक्षमार्गमांथी निषेध कर्यो छे,
तेथी मारा मनमां संशय उपजे छे के मोक्षना साधक ज्ञानी, देशव्रती श्रावक के मुनि तेमनी अवस्था
निरावलंबी तो नथी; तो कोना अवलंबने तेओ मुक्तिने साधशे? त्यारे श्री गुरु समाधान करे छे–
कहे गुरु–करमको नाश अनुभौ अभ्यास,
ऐसो अवलंब उनहीको उन पांही है;
निरूपाधि आतम समाधि सोई शिवरूप
और दौडधूप पुद्गल परछांही है.
श्री गुरु कहे छे के: अनुभवना अभ्यास वडे कर्मनो नाश थाय छे; शुभरागना अभ्यासथी कांई
कर्मनो नाश थतो नथी, कर्मनो नाश तो रागरहित चैतन्यना अनुभवना अभ्यासथी ज थाय छे. ज्ञानी–
श्रावक के मुनि पुण्य–पापनुं अवलंबन छोडीने पोताना ज्ञानमां न स्वानुभव करे छे, ते स्वानुभवमां
पोतानुं अवलंबन पोतामां ज छे, शुभ के अशुभनी उपाधिथी पार निरूपाधि आत्मसमाधि, एटले के राग–
द्वेष–मोहरहित निर्विकल्प आत्मध्यान ते ज मोक्षरूप छे, तेना अवलंबने ज धर्मात्मा मोक्षने साधे छे, एना
सिवाय बीजी बधी दोडधाम ते तो पुद्गलनी छायासमान छे. समिति–व्रत वगेरे शुभक्रिया