Atmadharma magazine - Ank 240
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आसो: २४८९ : १प :
तो आस्रव ज छे, तेनाथी साधुने के श्रावकने कर्मनिर्जरा थती नथी, निर्जरा शुद्धात्माना स्वानुभवथी ज
थाय छे.
श्रावकोने पण कांई रागनुं शरण नथी. रागनुं अवलंबन छोडीने चैतन्यना अवलंबने ज
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप परिणमन थतां मोक्षमार्ग सधाय छे, ने परमशांत निराकुळ स्वादनुं
वेदन थाय छे. पहेलां ज्ञान रागमां प्रवर्ततुं तेने बदले रागथी छूटीने ज्ञान पोते ज्ञानमां ज रमण
करवा लाग्युं त्यां परम वीतरागी अमृतनो आस्वाद ल्ये छे. –आवुं ज्ञान ज मुनिओनुं के
श्रावकोनुं शरण छे. जुओ, आ भगवाने कहेलो धर्म; आवो धर्म ते शरणरूप छे. ने ते ज
भगवाननुं फरमान छे. राग करवानुं भगवाननुं फरमान केम होय? राग तो बंधनुं कारण छे;
तेथी तेनो तो भगवाने निषेध कर्यो छे, एटले के ते धर्म नथी–एम भगवाने कह्युं छे. ने रागथी
अलिप्त रहीने ज्ञान ज्ञानमां ज प्रवर्ते– ते धर्म छे. स्वभावमां रमण करे ने रागथी अलिप्त रहे–
एवुं ज्ञान ज महा शरणरूप छे; ते ज्ञान आकुळतारहित परम शांतरसना स्वादथी भरेलुं छे. ते
ज्ञानमां रागथी निवृत्ति छे ने स्वभावमां प्रवृत्ति छे; ते विभावथी विमुख छे ने स्वभावमां
सन्मुख छे. आवी ज्ञानपरिणतिना आश्रये ज श्रावकधर्म के मुनिधर्म छे. अज्ञानी लोको एम जाणे
छे के बहारनी प्रवृत्तिना आधारे के शुभरागने आधारे ज मुनिपणुं के श्रावकपणुं टकतुं हशे! पण
अहीं कहे छे के भाई, एम नथी; मुनिओने के श्रावकोने बहारनी प्रवृत्तिनुं के रागनुं शरणुं नथी;
सर्व रागथी पार एकला चैतन्यना आश्रये ज मोक्षमार्ग सधाय छे. रागप्रवृत्तिथी छूटीने उपयोग
अंतरमां वळ्‌यो त्यां धर्मात्मा परम आनंदने साक्षात् अनुभवे छे;–रागमां जे आनंदनी गंध पण
नथी. रागरहित ज्ञानना परिणमनमां जे निराकुळ परम आनंदनो अनुभव छे तेने ज्ञानी ज
जाणे छे. अज्ञानी तो रागना आकुळस्वादने ज जाणे छे– पण निराकुळ शांतरसने जाणता नथी.
रागनुं ज शरण ने रागनुं ज अवलंबन मानीने तेमां ज ते लीन थई रहयो छे, तेथी ते कषायमां
ज वर्तनारो छे. रागथी भिन्न चिदानंद तत्त्वने जाणीने, ज्ञान उपयोगने तेमां वाळीने तेनुं शरणुं
जेणे लीधुं तेणे ज खरेखर अरिहंतनुं, सिद्धनुं, साधुनुं ने धर्मनुं शरणुं लीधुं छे, तेणे वीतरागनुं
शरणुं लीधुं नथी. श्रावको के मुनिवरो बधाय धर्मात्माओ भेदज्ञानवडे रागने जुदो जाणीने,
ज्ञानने ज मोक्षना कारण तरीके सेवे छे. आ रीते सर्व कर्मनो निषेध करीने स्वभावना आश्रये
ज्ञानमय परिणमन ते ज मोक्षनुं साधन छे. –एम भगवाननुं फरमान छे.
अत्यारे पद्मनाभ
तीर्थंकर क््यां छे? –
आवती चोवीसीनां पहेलां तीर्थंकर श्री
पद्मनाभस्वामी छे... साडी एकाशीहजार वर्ष पछी तेओ
तीर्थंकर थशे. अत्यारे ते पद्मनाभ तीर्थंकर क््यां छे?
श्रेणीकराजाना पेटमां छे..... श्रेणीक राजानो जे आत्मा
तेनी शक्तिना गर्भमां पद्मनाथ तीर्थंकर अनंती
सर्वज्ञशक्ति सहित बिराजी रह्या छे..... ते आवती
चोवीशीमां साक्षात् सर्वज्ञपणे प्रगट थशे. दरेक आत्मानी
शक्तिना गर्भमां परमात्मपणुं भर्युं छे, तेमांथी ज
परमात्मपदनो अवतार थाय छे, बहारथी नथी आवतुं.