Atmadharma magazine - Ank 240
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आसो: २४८९ : ३ :
तीर्थंकरोए सेवेलो
एक ज मार्ग
“शुद्धात्मप्रवृत्तिरूप मोक्षमार्ग
भादरवा वद पांचमना रोज सोनगढमां गोगीदेवी आश्रममां नवा
बंधायेला “मनकूला स्वाध्याय भवन” ना उद्घाटन प्रसंगे ते स्वाध्याय
भवनमां पधारीने प्रवचनसार गा. १९९ तथा २०० उपर प्रवचन करतां पू.
गुरुदेवे प्रमोदथी कह्युं के अहो, मोक्षमार्गनी उत्तम गाथा आवी छे. आचार्यदेव
मार्गना प्रमोदथी निःशंकपणे कहे छे के तीर्थंकरोए सेवेलो मार्ग अमे
अवधारित कर्यो छे ने कृत्य कराय छे. क्षणे क्षणे अमे मोक्षने साधी रह्या छीए.
वाह! आचार्यभगवान अने सन्तो कहे छे के अमे अंतरमां आवा शुद्धात्मानो
अनुभव करीने मोक्षमार्ग निर्धारित कर्यो छे ने तेमां अमे प्रवृत्ति करी ज रह्या
छीए. –अमारो आत्मा उल्लसित थईने शुद्धात्मपरिणतिमां परिणमी रह्यो छे,
ने मोक्षने साधी रह्यो छे. अमारो केवळज्ञाननो ध्वज फरकी रह्यो छे.
केवळज्ञाननो झंडो फरकावता अल्पकाळे अमे मोक्षमां जशुं.

मोक्षमार्ग केवो छे? ने मोक्षमार्गने प्राप्त करीने तीर्थंकरो सिद्धपद कई रीते पाम्या? ते वात
आचार्यदेव आ गाथामां कहे छे–
श्रमणो जिनो तिर्थंकरो आ रीत सेवी मार्गने
सिद्धि वर्या; नमुं तेमने, निर्वाणना ते भाग ने. (१९९)
तीर्थंकरभगवंतो, केवळीभगवंतो के बीजा अचरम शरीरी एकावतारी सन्तो, ते बधाये केवो
मोक्षमार्ग प्राप्त कर्यो? के शुद्धात्मतत्त्वमां प्रवृत्तिरूप मोक्षमार्ग एक ज छे, ते एक ज विधिथी
मोक्षमार्गने साधीने बधा जीवो सिद्धपदने पाम्या ने पामशे. विदेहक्षेत्रमां अत्यारे सीमंधरभगवान
वगेरे २० तीर्थंकरो बिराजे छे, बीजा लाखो केवळीभगवंतो बिराजे छे, ते बधाय चरमशरीरी
भगवंतो अने कुंदकुंदाचार्यदेव वगेरे सन्तो जेओ एक भवे मोक्ष पामशे– एवा अचरमशरीरी
भगवंतो, ते बधाये शुद्धात्मतत्त्वमां प्रवत्तिरूप एक ज विधिथी मोक्षना मार्गने साध्यो. शुद्धात्मानी
सन्मुख थतां निर्विकल्प वीतरागी पर्याय उत्पन्न थाय, अशुद्धतानो व्यय थाय ने शुद्धात्मानी ध्रुवता
रहे–आवा उत्पाद–व्यय–ध्रौव्यात्मक मोक्षमार्ग छे. अत्यारसुधीमां अनंता सिद्ध थया, –केटला? के छ
महिना ने आठ समयमां कूल छसो ने आठ जीवो अढी द्वीपमांथी मोक्षे जाय