छे, ओछा नहि ने वधारे पण नथी; एवा अनंता छ महिना वीती गया तेमां अनंता छ महिना वीती
गया तेमां अनंता ६०८ जीवो मोक्ष पाम्या. जगतमां सम्यग्द्रष्टि असंख्याता छे, मनुष्यमां तो संख्याता
ज सम्यग्द्रष्टि छे, पण बीजी त्रणे गतिमां असंख्याता सम्यग्द्रष्टि छे. जगतना जे कोई जीवोए
सिद्धपदने साध्युं के हवे साधी रह्या छे ने भविष्यमां साधशे ते बधाय मुमुक्षु जीवो शुद्धात्मामां
प्रवृत्तिरूप मोक्षमार्गने पामीने ज मोक्ष पाम्या छे–पामे छे–पामशे. आचार्यदेव प्रमोदथी कहे छे के अहो,
आवा शुद्ध मोक्षमार्गने नमस्कार हो... ते मार्गने साधनारा भगवंतोने नमस्कार हो.
परालंबी पर्याय मोक्षमार्ग नथी. शुद्धआत्मामां प्रवृत्ति ते ज मोक्षमार्ग छे, ने परद्रव्यमां प्रवृत्ति ते
मोक्षमार्ग नथी. अहो, आवो एक ज मोक्षमार्ग छे. आवो मार्ग तीर्थंकरोए पोते साध्यो, तेओ
समवसरणमां आ ज मार्ग कही रह्या छे, गणधरो ते झीली रह्या छे, सन्तो ते सेवी रह्या छे ने ईंद्रो ते
आदरी रह्या छे. मोक्षने माटे मुमुक्षुने आ एक ज मार्ग छे.
भावनमस्कार करे छे. केवो छे आ भाव नमस्कार? जेमां भाव्य ने भावकनो भेद नथी,
परसन्मुखता नथी, विकल्प नथी, अंतरमां पोते ज स्वयं शुद्धात्मामां प्रवर्ते छे, ए ज
शुद्धात्मप्रवृत्तिरूप मोक्षमार्गने अभेद नमस्कार छे. अहो, आचार्यदेव मार्गना प्रमोदथी निःशंकपणे
कहे छे के तीर्थंकरोए सेवेलो मार्ग अमे अवधारित कर्यो छे... कृत्य कराय छे... अर्थात् अमे क्षणे
क्षणे मोक्षने साधी रह्या छीए. अहो, मोक्षमार्गनी उत्तम गाथा आवी छे. आचार्यभगवान अने
सन्तो कहे छे के अमे अंतरमां आवा शुद्धात्मानो अनुभव करीने मोक्षमार्ग निर्धारित कर्यो छे ने
तेमां अमे प्रवृत्ति करी ज रह्या छीए. अमारो आत्मा उल्लसित थईने शुद्धात्मपरिणतिमां
परिणमी रह्यो छे, ने मोक्षने साधी रह्यो छे. आवा मोक्षमार्गमां अमे निश्चिंत छीए, निःशंक
छीए. कोई बीजाने पूछवा जवुं पडे एवी शंका नथी. विकल्प वच्चे जराक आवे पण पण ते
अमारा अनुभवनो विषय नथी, तेमां अमारी प्रवृत्ति नथी, अमे तो शुद्धात्म प्रवृत्तिरूप मार्गने ज
एकने ज अवधारित कर्यो छे, अने भगवंतोए पण आ ज मार्ग साध्यो हतो एम अमारा
स्वानुभवनी निःशंकताथी अमे जाणीए छीए. आवा मार्गने साधीने अमे पण मोक्षमां चाल्या जशुं.
निर्विकल्प उपयोगने, –शुद्धोपयोगने, हुं अंगीकार करुं छुं; ते प्रतिज्ञा, अहीं मोक्षमार्गभूत
शुद्धात्मप्रवृत्तिरूप पोते परिणमीने आचार्यदेव पूरी करे छे–
निर्ममपणे रही स्थित आ परिवर्जुं छुंहुं ममत्वने (२००)
स्वभावथी आत्मा ज्ञायक ज छे–एम जाणीने, अनुभवीने निर्ममत्वमां स्थित रहीने एटले के
शुद्धात्मामां स्थित रहीने, ममत्वने छोडे छे, –आ साक्षात् मोक्ष–