आसो: २४८९ : प :
मार्ग छे.
जुओ, हवे टीका केटली सरस छे!
हुं आ मोक्षाधिकारी, ज्ञायकस्वभावी आत्मतत्त्वना परिज्ञानपूर्वक, ममत्वना त्यागरूप अने
निर्ममत्वना ग्रहणरूप विधि वडे सर्व आरंभथी (उद्यमथी) शुद्धात्मामां प्रवर्तुं छुं, कारण के अन्य
कृत्यनो अभाव छे. शुद्धात्मामां प्रवृत्ति सिवाय बीजा कार्यनो मारामां अभाव छे.
आचार्यदेव कहे छे के हुं मोक्षनो अधिकारी छुं, संसारनी चारे गतिना हवे नदावा कर्या छे.
वडोदराना सयाजीराव गायकवाड पहेलां घेटाबकरा चरावता हता तेने बोलावीने राणीए पूछयुं के केम
आव्या छो? तो तेणे कह्युं के राज्य चलाववा आव्यो छुं; हुं राज्यनो अधिकारी छुं. तेणे पुण्यना जोरे तेम
कह्युं तेम अहीं पवित्रताना जोरे साधकसन्तो कहे छे के हुं मोक्षनो अधिकारी छुं, केवळज्ञाननुं साम्राज्य
लेवा आव्यो छुं. तेने पोतानी पवित्रतानो विश्वास छे. अंदरथी पवित्रता प्रगटी त्यां भान थयुं के अहे
अमे हवे संसारमां डुबवाना नथी, अमे तो अल्पकाळमां मोक्ष पामवाना ज अधिकारी छीए. सो मांथी
९८ वहाण डुबे ने बे तरे त्यां पुण्यवंतने विश्वास छे के मारा वहाण न डुबे... तेम साधक धर्मात्माने
पोतानी पवित्र परिणतिना जोरे विश्वास छे के मारो आत्मा मोक्षनो अधिकारी छे, भवनो भाव मारा
ज्ञायकस्वभावमां नथी. हुं तो ज्ञायक भाव ज छुं–एम मे जाण्युं छे ने हवे सर्व उद्यमथी तेमां ज हुं प्रवर्तुं
छुं. हवे अमारा वहाण संसारमां डुबे नहि, अमे मोक्षने साधी रहया छीए. अमारा ज्ञायकस्वभावी
आत्मा सिवाय अन्य पदार्थोमां सर्वत्र अमने निर्ममत्व ज छे. शुद्धात्माना ज्ञानपूर्वक ममत्वनो त्याग
थाय छे, आवा मार्गवडे मोहने उखेडीने शुद्धात्माने अत्यंत निष्कंपपणे प्राप्त करुं छुं. अमारो केवळज्ञाननो
ध्वज फरकी रह्यो छे. केवळज्ञाननो झंडो फरकावता अल्पकाळे अमे मोक्षमां जशु.
मुमुक्षुने आत्मशुद्धि ध्यान वडे थाय छे ने ते ध्यान तेने मतिश्रुतज्ञान द्वारा थाय छे.
मतिश्रुतज्ञान परोक्ष छे के प्रत्यक्ष छे?
बाह्यपदार्थोने जाणवामां मति–श्रुतज्ञान परोक्ष छे, अने अंर्तमुख स्वसंवेदनमां ते
मतिश्रुतज्ञान प्रत्यक्ष छे, तेमां ईंद्रियनुं अवलंबनन छूटी गयुं छे.
ज्ञानपर्याय अंदरमां वळीने एकाग्र थई त्यां उपयोगनी स्वद्रव्यमां प्रवृत्ति थई, ने
परद्रव्यप्रवृत्तिरूप मोह छूटयो. आवो स्वद्रव्यमां एकाग्र उपयोग ते ध्यान छे. आवुं ध्यान शुद्ध छे,
अनाकुळ छे, तेमां अन्य द्रव्य साथे संपर्कनो अभाव होवाथी अशुद्धतानो अभाव छे. आवी जे
ध्यानपरिणति छे ते आत्माथी अनन्य (एकमेक अभेद) होवाथी आत्माथी जुदी नथी, तेमां एकला
स्वद्रव्यनुं ज संचेतन होवाथी शुद्धता छे. आवुं ध्यान चोथा गुणस्थाने पण होय छे. अंतरना मनन–
विचार वगर आ वातनो पत्तो खातो नथी. अरे जीवो! एकला आत्माने देखो.. एनुं अवलोकन
करो... अंतरमां उपयोगने वाळीने स्वद्रव्यने लक्षमां ल्यो... उपयोगवडे आत्मानुं अवलोकन थतां
ज्ञाता–ज्ञान–ज्ञेय ए त्रणेनुं एकाकारपणुं थयुं ते ज ध्यान छे. ते ध्यान वखते पर्याय छे तो खरी, पण
ते आत्मा साथे एकाकार अभेद परिणमेली छे. अंतरनी समजणमां आ वात लईने तेनो्र प्रयोग करे
तो ध्यान थाय. केवळज्ञान आवा ध्यानथी प्रगटे छे, मुनिदशा पण आवा ध्यानथी प्रगटे छे ने
सम्यग्दर्शनपणु आवा ध्यानथी ज प्रगटे छे. आवुं ध्यान ते ज अमारी साची संपत्ति छे.
–प्रवचनसार प्रवचनमांथी.