Atmadharma magazine - Ank 240
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म: २४०
जीवे छे ते ज्ञानमय छे
देहमय के रागमय नथी.
(समयसार कळश ३८–४० तथा
गाथा ६७–६८ उपरनां प्रवचनोमांथी)

आत्मा ज्ञानमय छे, तेना बधा भावो ज्ञानमय ज छे; पुद्गलथी रचायेला देहादि के
रागादि भावो ते खरेखर आत्मा नथी; ते देहादिने के रागादिने आत्मा कहेवो ते तो ‘घीनो
घडो’ कहेवा जेवो व्यवहार छे. पुद्गलथी बनेला भावो पुद्गल ज होय, जीव न होय; तेम
जीवथी रचायेला भावो जीव ज होय, अजीव न होय. जीवना भावो तो ज्ञानमय छे, ते जीवथी
जुदा नथी. जेम जगतमां सोनानां बनेला म्यानने लोको सोनानुं ज देखे छे, कोई रीते ते
सोनाना म्यानने तरवाररूपे देखता नथी. तलवारनुं म्यान–एम कहेवा छतां लोको जाणे छे के
तलवार तो लोढानी छे ने म्यान तो सोनानुं छे, एटले खरेखर म्यान तलवारनुं नथी, म्यान
तो सोनानुं ज छे. तेम व्यवहारकथनमां पंचेन्द्रियजीव, देवनो जीव, रागी जीव, क्रोधीजीव–एम
कहेवामां आवे छे त्यां ज्ञानी तो समजे छे के परमार्थे जीव तो ज्ञानमय ज छे, कांई ईंद्रियमय के
रागमय नथी. ईंद्रियो अने रागादि भावो तो ज्ञानस्वभावथी जुदा छे. ईंद्रियो कांई जीवथी
बनेली नथी, ते तो पुद्गलथी बनेली छे, तेथी ते पुद्गल ज छे, जीव नथी. तेम ज रागादि
भावो पण जीवना स्वभावमांथी थयेला नथी तेथी परमार्थे ते जीव नथी; पण पुद्गलना ज
आश्रये थयेला छे ते परमार्थे पुद्गलना ज छे. जीवना भाव खरेखर होय ते जीवथी कदी जुदा
न पडे. –आम जीव–अजीवनी अत्यंत भिन्नता ओळखावीने, अने रागथी पार जीवनुं परमार्थ
स्वरूप ज्ञानमय छे–ते ओळखावीने आचार्यदेव कहे छे के अहो, ज्ञानीजनो! तमे आवा
परमार्थस्वरूप जीवने जाणो. वर्णादिकने अने रागादिकने जीवथी भिन्न जाणो. जीव तो सदाय
ज्ञानमय छे–एम अनुभवो. ज्ञानीधर्मात्मा तो आवा आत्माने अनुभवे ज छे, पण तेमनुं नाम
लईने बीजा जीवोने पण आचार्यदेवे प्रेरणा करी छे के ज्ञानीओनी जेम तमे पण आवा
आत्मानो अनुभव करो.
आत्मा देहथी ने रागथी भिन्न ज्ञानमय ज छे; परंतु जेने एवो ज्ञानमय आत्मा प्रसिद्ध नथी,
जे ज्ञानमय आत्माने ओळखतो नथी तेने समजाववा पंचेन्द्रियजीव, रागी जीव एम व्यवहार करवामां
आवे छे, पण खरेखर तेमां ईंद्रियो के राग ते जीव नथी, जीव तो ज्ञानमय ज छे एम ओळखाण करे
तो ज जीवनी खरी ओळखाण थाय छे. जेम घडो तो माटीनो ज छे, कांई घीनो नथी. पण जेने घीना
संबंध वगरनो माटीनो घडो प्रसिद्ध नथी तेने समजाववा “घीनो घडो” एवो उपचार करवामां आवे
छे, खरेखर घडो घीनो नथी पण माटीनो ज छे. तेम शुद्धज्ञानमय जीवने लोको जाणता नथी ने
‘अशुद्धजीव’ ज तेमने प्रसिद्ध छे, तेथी तेमने समजाववा एम कहेवामां आवे छे के जे आ वर्णादिमान
जीव छे ते खरे–