Atmadharma magazine - Ank 240a
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 17 of 22

background image
आसो: २४८९ : १प :
समकिती धर्मात्मा गृहस्थपणामां रह्या छतां पोताना आत्माने आवो अनुभवे छे मारी चैतन्य
रिद्धि–सिद्धि सदाय मारा अंतरमां वृद्धिगत छे, मारा अंतरनी चैतन्य लक्ष्मीनो हुं स्वामी छुं, जगत
पासेथी कांई लेवुं नथी. ए भगवाननो दास छे ने जगतथी उदास छे. जगतथी उदास थईने
भगवानना मार्गने ते आराधे छे. आवा समकिती जीव सदाय सुखीया छे.
सम्यग्दर्शन ज धर्मना सर्वे अंगोने सफळ करे छे. क्षमा वगेरे धर्म के ज्ञान–वैराग्य वगेरेनी
सफळता सम्यग्दर्शनथी ज छे. सम्यग्दर्शन वगर ते क्षमा वगेरे के क्षान वगेरे ‘धर्म’ नाम पामता नथी.
सम्यग्दर्शन वगरनुं ज्ञान ते अज्ञान छे, चारित्र ते मिथ्याचारित्र छे, सम्यग्दर्शन सहित ज ज्ञान
वगेरेनी सफळता छे.
धर्मात्माने स्वप्नमां पण चैतन्यनो अने आनंदनो महिमा भासे. सम्यक्त्वमां कोई दोष
स्वप्ने पण आववा न द्ये. आवा समकिती धर्मात्मा जगतमां धन्य छे; ते ज सुकृतार्थ छे, ते ज
शुरवीर छे, ते ज पंडित अने मनुष्य छे. भले शास्त्रो न भण्यो होय, वांचता के बोलतांय न
आवडतुं होय छतां ते मोटो पंडित छे, बारअंगनो सार तेणे जाणी लीधो छे. करवायोग्य उत्तम
कार्य तेणे कर्युं छे तेथी ते कृतार्थ छे. युद्धमां हजारो योद्धाने जीतवा छतां अंतरमां मिथ्यात्वने जे
जीती शक््यो नथी ते खरेखर शुरवीर नथी, जेणे मिथ्यात्वने जीती लीधुं ते समकिती ज खरा
शुरवीर छे. सम्यग्दर्शन वगरना मनुष्यने पशुसमान कह्यो छे अने सम्यग्दर्शन वगरना मनुष्यने
पशुसमान कह्यो छे अने सम्यग्दर्शन सहितना तिर्यंचने देवसमान कह्यो छे. लाखो–करोडो रूपिया
खर्चीने महोत्सव करे ने तेमां कृतार्थता माने. पण तेमां खरेखर कृतार्थता नथी, जेणे सम्यग्दर्शन
कर्युं ते ज कृतार्थ छे. आचार्यदेव कहे छे के अहो, ते श्रावक पण धन्य छे के जेणे आवा निर्मळ
सम्यक्त्वनी आराधना प्रगट करी छे.
ज्ञानीनो मार्ग निराश थवानो
नथी शूरवीर थवानो छे
केवळ निराशा पामवाथी जीवने सत्समागमनो प्राप्त लाभ
पण शिथिल थई जाय छे. (७७८)
खेद नहीं करतां शूरवीरपणुं ग्रहीने ज्ञानीने मार्गे चालतां
मोक्षपाटण सुलभ ज छे. (८१९) (श्रीमद् राजचंद्र)
आत्मधर्मनुं आपनुं लवाजम आ अंके समाप्त थाय छे. नवा
वर्षनुं लवाजम (रूा. चार) आपे न मोकल्या होय तो पंदर दिवसमां
मोकली देवा विनंती छे. पंदर दिवस बाद आपना तरथी कोई सूचना
नहि होय तो “आत्मधर्म” आपने V. P. थी मोकलीशुं–जे छोडावी लेवा
विंनती छे. –आ प्रमाणे व्यवस्थाविभाग तरफथी सूचना छे.
लवाजम मोकलवानुं सरनामुं–
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट
सोनगढ (सौराष्ट्र)