: १६ : आत्मधर्म: २४०A
प्र व च नो मां थी
मोक्षमार्ग प्रकाशकना सातमा अध्यायमां अनेक पडमांथी स्पष्टीकरण करीने
तत्त्वनिर्णयमां रही जती भूलनुं स्वरूप समजाव्युं छे, अने यथार्थ तत्त्वनिर्णय कराव्यो छे, तेना
उपरना प्रवचनोनो सार अहीं आपवामां आव्यो छे. (बीजा लेखो माटे जुओ अंक २३७–
२३८)
आ भवतरुनुं मूळ शुं छे?
मिथ्यात्वभाव ते ज आ भवतरुनुं मूळ छे. ते भवतरुना मूळने छेदवा माटे शुं करवुं जोईए?
ते भवतरुना मूळने छेदवा माटे मोक्षनो उपाय करवो जोईए. प्रथम यथार्थ तत्त्वश्रद्धा वडे
सम्यग्दर्शन प्रगट करतां भवतरुनुं मूळ छेदाई जाय छे.
सम्यग्दर्शन केवुं छे?
सम्यग्दर्शन ते धर्मरूपी वृक्षनुं मूळ छे; अथवा मोक्षनुं मूळ सम्यग्दर्शन छे.
जे जीवे गृहीतमिथ्यात्व छोडयुं छे पण हजी अगृहीतमिथ्यात्व छोडयुं नथी ते जीवो केवा छे?
ते जीवोने अहीं ‘जैनमत अनुयायी मिथ्याद्रष्टि’ कह्या छे; व्यवहारमां तेओ जैनमतने ज माने
छे, जैनमतना यथार्थ वीतरागी देव–गुरु शास्त्र सिवाय बीजा कोई कुदेवादिने मानतो नथी, परंतु
पोताना अंतरमां निश्चय–व्यवहारनी संधिपूर्वक यथार्थ तत्त्व निर्णय अने अनुभव करता नथी, तो
तेओ पण मिथ्याद्रष्टि ज रहे छे. एवा जीवोने केवा केवा प्रकारे तत्त्वनिर्णयमां सूक्ष्म भूल रही जाय छे
ते अहीं मोक्षमार्ग प्रकाशकना सातमा अध्यायमां समजाव्युं छे.
मिथ्यात्व केम रह्युं?
ते व्यवहारु जिन आज्ञाने माने छे ने कुदेवादिने नथी मानतो, परंतु अंतरस्वभावना सम्यक्
निर्णयरूप जे परमार्थ जिनाज्ञा छे ते हजी तेणे जाणी नथी तेथी तेने पण मिथ्यात्व रहे छे.
मिथ्यात्व केवुं छे?
मिथ्यात्वभाव जीवनुं अत्यंत बूरुं करनार महाशत्रु छे; ते मिथ्यात्व शत्रुनो अंश पण बूरो छे,
ने अत्यंत उद्यमवडे ते त्यागवा योग्य छे.
जिनागमनुं वर्णन केवुं छे?
जिनागमनुं वर्णन निश्चय–व्यवहाररूप छे. क््यांक निश्चयनी मुख्यताथी कथन छे अने क््यांक
व्यवहारनी मुख्यताथी कथन छे.
ए निश्चय–व्यवहारनां लक्षण शुं छे?
जे यथार्थ छे ते निश्चय छे, अने जे उपचार छे ते व्यवहार छे. तेमां निश्चयवडे जे निरूपण कर्युं
होय तेने तो सत्यार्थ मानी तेनुं श्रद्धन करवुं, अने व्यवहारनय वडे जे निरूपण कर्युं होय तेने
असत्यार्थ मानी तेनुं श्रद्धन छोडवुं.
व्यवहारनुं श्रद्धन शा माटे छोडवुं?
केम के व्यवहारनय स्वद्रव्य–परद्रव्यने, तथा तेना भावोने, तेमज कारण–कार्य वगेरेने कोईना कोईमां