Atmadharma magazine - Ank 240a
(Year 20 - Vir Nirvana Samvat 2489, A.D. 1963)
(Devanagari transliteration).

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आसो: २४८९ : प :
आराधक
धर्मात्मानो अनुभव
सम्यग्द्रष्टि धर्मात्मा बीजाने पण सम्यग्द्रष्टि बनावे छे.
(समयसार गा. ३८ ना प्रवचनमांथी)

अहा, जेने चैतन्यअमृतना दरिया अंदरथी फाटया छे, आनंदना अनुभवना दरिया जेने
ऊछळ्‌या छे, एवा आराधक धर्मात्मानी आ वात छे. ते धर्मात्मा एम अनुभवे छे के शुद्ध
आत्मानी अनुभूतिथी हुं प्रतापवंत छुं. समस्त पदार्थोथी जुदो ने रागथी पण पार–एवा मारा
स्वानुभवथी हुं प्रताप वंत छुं; मारा स्वरूपथी बहार जगतना समस्त परद्रव्यो अनेक प्रकारनी
संपदावडे वर्ती रह्या छे परंतु ते कोई पदार्थ मने मारारूपे जरापण भासता नथी; हुं परमात्मा छुं,
एक परमाणुमात्र पण मारुं नथी; जुओ; आ भेदज्ञाननी सूक्ष्मता! एक परमाणुमात्रने ज्यां
जुदो कर्यो त्यां ते परमाणुना संबंधे थता भावोथी पण भिन्नता जाणी. एकली चैतन्यसंपदाने ज
पोताना अंतरमां स्वपणे देखे छे. अहा, शांत चैतन्यरसनो दरियो अंदरमां ऊछळे छे, पण
विकल्प आडे ते ढंकाई गयो छे. ज्यां विकल्पथी जुदो पडीने अंदरमां गयो त्यां आखो चिदानंद
दरियो छलोछल भर्यो छे तेमां निमग्न थाय छे. आ रीते स्वरूपने अनुभवता थका धर्मात्मा
परद्रव्यना अंशमात्रने पोतापणे देखता नथी, ते निःशंक छे के हवे परद्रव्य प्रत्ये भावकपणे के
ज्ञेयपणे एकता कदी थवानी नथी, एटले फरीने कदी हवे मोह उत्पन्न थवानो नथी. एकत्वबुद्धिने
तळीयाझाटक मूळथी ऊखेडी नाखी छे, मोहनो नाश करीने अप्रतिहत सम्यग्ज्ञान प्रकाश थयो छे;
ते जाणे छे के महान ज्ञानप्रकाश मने थयो छे; अने हवे फरीने कदी मोह थवानो नथी.
जुओ, आ पंचमकाळना क्षयोपशमकिती अप्रतिहत परिणतिने क्षायिक जेवी अनुभवे छे.
केवळज्ञान थया पहेलां मतिश्रुतज्ञानमां स्वसंवेदननी आवी निःशंकता थई गई छे. आ जे भावे हुं
ऊपड्यो छुं ते ज भावे सीधुं क्षायिक लीधे ज छूटको. वच्चे भंग पडवानो नथी. निरंतर वधती धाराए
अप्रतिहतपणे क्षायिकदशा थवानी छे. ज्ञानीनी आवी परिणतिने अज्ञानी जीवो ओळखी शकता नथी,
अरे मूढ जीवोने तेनो विश्चास पण बेसतो नथी. निजरसथी ज एटले चैतन्यना स्वसंवेदनथी ज
मोहने निर्मूळ करीने महान ज्ञानप्रकाश मने प्रगट्यो छे आवी धर्मीनी अनुभूति छे. आवी अनुभूति
प्रगट करवा जेवी छे.
प्रश्न:– आ तो गमे त्यारे थई शके छे?
उत्तर:– गमे त्यारे नहि पण अत्यारे ज मारे आ करवा जेवुं छे एम जिज्ञासुने रुचि थाय. गमे
त्यारे थशे माटे अत्यारे नथी करवुं एम जो कहेतो होय तो तेने खरेखर आत्मा रुच्यो ज नथी. जेने
आत्मा खरेखर रुच्यो होय ते वर्तमानमां ज तेनो प्रयत्न करे. अत्यारे आ करवा जेवुं नथी ने बीजुं
करवा जेवुं छे एम कहेनारने तत्त्वनो अनादर छे.