Atmadharma magazine - Ank 241
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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कारतकः २४९०ः ७ः
उपशमभावनी छाया पथरायेली होय. विधविध रंगना पुष्पोथी शोभती वनराजी
पण, जाणे रत्नत्रयनां फळ आपवानी तैयारी करती होय–तेम बहु सुशोभित अने
प्रफूल्ल छे. आवा प्रसन्न अने प्रशांत वातावरणमां अनंता साधकोनी
साधनाभूमिने नीहाळतां यात्रिकनुं हृदय पण प्रसन्न अने प्रशांत थईने साधनाना
विचारोना हिलोळे चडे छे. सिद्धिधामनी छायामां आव्या एटले तो बस! जाणे
सिद्धभगवंतोनी नजीक आव्या....ने हवे अनंत सिद्धोनी वस्तीमां जवानी तैयारी
थई. अहा, आवो सम्मेदशिखरजीनी आसपासनो वैभव जोतां शिखरजी तीर्थनो
खूब–खूब महिमा आवतो हतो. शिखरजी एटले जाणे सिद्धभगवान अने आ बधा
आसपासना नाना पहाडो ते जाणे के सिद्धिना साधक मुनिवरो; सिद्धभगवाननी
आसपास जाणे के मुनिओना टोळां वींटाईने बेठा होय! एम शिखरजी पर्वतनी
आसपास अनेक नाना पर्वतो वींटायेला छे; अने जेम साधक जीवो
सिद्धभगवाननी महत्ताने प्रसिद्ध करे, तेम ए नाना पर्वतो मोटा शिखरजी धामनी
महत्ताने प्रसिद्ध करी रह्या छे. अने सौथी ऊंची सुवर्णभद्र टूंक तो जाणे पोकार करी
रही छे के ‘आवो....रे....आवो....आ रह्युं भारतनुं शाश्वत सिद्धिधाम! एने
निहाळीने शिखरजीधामने भेटवानी खूब तालावेली जागे छे. जेम मुनिनी परिणति
मोक्ष तरफ दोडे तेम ‘कल्याणवर्षिणी’ मोक्षधाम तरफ दोडी रही छे, अने शिखरजीने
नजरे देख्या पछी तो ते एवी दोडी....एवी दोडी....के जेवी क्षपकश्रेणीमां मुनिनी
परिणति केवळज्ञान तरफ दोडे. जेम जेम नजीकथी सिद्धिधामनां स्पष्ट दर्शन थाय छे
तेम तेम गुरुदेवनुं हृदय आनंदथी ऊछळे छे. बोल्या वगर पण तेमनी मुद्रामांथी
प्रसन्नताना एवा भावो ऊठे छे के अहा मारा वहाला नाथनो आजे भेटो
थयो....धन्य घडी! धन्य जीवन!
(“मंगल तीर्थयात्रा” पुस्तकनुं एक प्रकरणः पृ. ३०६–३०८)
* * *
आराधक धर्मात्माना दर्शनथी मुमुक्षुना हृदयमां जेवी आनंदनी उर्मि
जागे छे तेवी कोई पण पदार्थमां जागती नथी.
धर्मीने जोतां एम थाय के वाह! धन्य धन्य तारो अवतार!
अतीन्द्रिय आत्माने तें स्वानुभवमां लीधो छे....अहो, परमेश्वरना मार्गमां
तमे भळ्‌या छो.