उपशमभावनी छाया पथरायेली होय. विधविध रंगना पुष्पोथी शोभती वनराजी
पण, जाणे रत्नत्रयनां फळ आपवानी तैयारी करती होय–तेम बहु सुशोभित अने
प्रफूल्ल छे. आवा प्रसन्न अने प्रशांत वातावरणमां अनंता साधकोनी
विचारोना हिलोळे चडे छे. सिद्धिधामनी छायामां आव्या एटले तो बस! जाणे
सिद्धभगवंतोनी नजीक आव्या....ने हवे अनंत सिद्धोनी वस्तीमां जवानी तैयारी
खूब–खूब महिमा आवतो हतो. शिखरजी एटले जाणे सिद्धभगवान अने आ बधा
आसपासना नाना पहाडो ते जाणे के सिद्धिना साधक मुनिवरो; सिद्धभगवाननी
आसपास अनेक नाना पर्वतो वींटायेला छे; अने जेम साधक जीवो
सिद्धभगवाननी महत्ताने प्रसिद्ध करे, तेम ए नाना पर्वतो मोटा शिखरजी धामनी
रही छे के ‘आवो....रे....आवो....आ रह्युं भारतनुं शाश्वत सिद्धिधाम! एने
निहाळीने शिखरजीधामने भेटवानी खूब तालावेली जागे छे. जेम मुनिनी परिणति
नजरे देख्या पछी तो ते एवी दोडी....एवी दोडी....के जेवी क्षपकश्रेणीमां मुनिनी
परिणति केवळज्ञान तरफ दोडे. जेम जेम नजीकथी सिद्धिधामनां स्पष्ट दर्शन थाय छे
प्रसन्नताना एवा भावो ऊठे छे के अहा मारा वहाला नाथनो आजे भेटो
थयो....धन्य घडी! धन्य जीवन!
तमे भळ्या छो.