Atmadharma magazine - Ank 241
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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ः ६ः आत्मधर्मः २४१
अनुभवाय, ते झट व्यक्त नथी थतो पण धर्मात्माना हृदयनी गंभीरतामां ज समाई रहे छे,
तेम जीवनमां शिखरजीना प्रथम दर्शने उल्लसती कोई अकथ्य आनंदनी उर्मिओ थोडीवार
वाणीने बंध करी दे छे, ने हृदयनी गंभीरतामां ज ते उर्मिओ समाई जाय छे. अहा, केवुं
अद्भुत ए दर्शन!
गुरुदेव तो पारसनाथ–टूंक उपर मीट मांडीने नीहाळी ज रह्या; पारसटूंकना
ध्येये पंथ तो झडपभेर कपातो जतो हतो–जेम सिद्धपदना ध्येये चिदानंदस्वभावमां मीट
मांडता साधकनो पंथ झडपभेर खूटी जाय छे तेम. माताने देखीने जेम बाळक तेने
भेटवा दोडे तेम मोटरो शिखरजीने भेटवा दोडी रही छे. हवे गुरुदेवनी मोटर १६ माईल
लांबी घाटी झाडी वच्चेथी पसार थई रही छे. वननां वृक्षो पण अनेरा प्रकारे खीली
ऊठया छे, जाणे के ए वृक्ष वनवासी साधक सन्तोने तापथी रक्षवा माटे मधुरी छाया
पाथरीने तेमनी सेवा करी रह्या छे. रमणीय पहाडो ने गीच झाडीओ वच्चेथी मोटरो
पसार थती त्यारे न तो आकाश देखाय, के न जमीन देखाय; मात्र झाडना उपला
भागो देखाय, नीचेना भाग न देखाय....जाणे दुनियाना वातावरणथी दूर दूर कोई
गंभीर–अगम्य ऊंडाणमां ऊतर्या होईए! वनराजीनी छायाथी छवायेलो १६ माईलनो
आ रस्तो एवो मनोहर छे–जाणे