Atmadharma magazine - Ank 241
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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कारतकः २४९०ः पः
प्र....थ....म द....र्श....न
(सं. २०१३ फागण सुद पांचम)
अहा, भरतक्षेत्रना आ तीर्थाधिराज चालीस चालीस माईल दूरथी दर्शन
आपीने भव्य जीवोने आकर्षी रह्या छे. गयाशहेरथी प्रस्थान करीने १२१ माईल
दूर शिखरजीधाम तरफ गुरुदेव पधारी रह्या छे. घणा घणा दिवसोथी जेनी राह
जोता हता ते पावन तीर्थधाममां पहोंचवा माटेनो आजनो प्रवास घणो
प्रसन्नकारी हतो. बस, हवे इष्टधाममां पहोंचवानुं छे....एवा इष्ट प्रत्येना
गुरुदेवना प्रमोदने लीधे कल्याणवर्षिणी–मोटर पण आजे तो वधु झडपे दोडती
हती. गुरुदेवना अंतरमां मोक्षमार्गी तीर्थंकरो अने संतोना स्मरणो घूमता हता ने
बहारमां तेमना नयनो शिखरजी तरफ मीट मांडी रह्या हता; हमणां शिखरजी
देखाशे....हमणां देखाशे! केवा हशे ए धाम!!–एवा रटणपूर्वक गुरुदेव
अवारनवार पूछता के शिखरजी देखाय छे? घडीकमां आंखो मींचीने गुरुदेव
शिखरजी धाम उपर विचरेला साधक सन्तोनां टोळांने अंतरमां नीहाळतां,
घडीकमां जाणे शिखरजी उपरथी सन्तोना साद संभळाता होय–एम दूर दूर नजर
लंबावीने नीहाळता.–एवामां ३०–४० माईल दूरथी सम्मेदशिखर–सिद्धिधामनां
दर्शन थतां गुरुदेवनुं हैयुं प्रसन्नताथी नाची ऊठयुं.
अहा, ए सिद्धिधामनां प्रथम दर्शननी उर्मिओनी शी वात! जेम चंद्र दूर
रहीने पण दरियाने आनंदथी उछाळे छे ने पोतानी तरफ खेंचे छे, तेम
सम्मेदशिखरजी धाम हजी दूर होवा छतां पण भक्तहृदयोमां आनंदना तरंग
उछळता थका तेओने पोतानी तरफ खेंची रह्या छे;....अथवा तो, सिद्धालयवासी
सिद्धभगवंतो जाणे के साधकोनां हृदयने सिद्धपद तरफ उल्लसावता होय!–एवी
सरस उर्मिओ जागती हती. दूरदूरनुं दर्शन पण गुरुदेवना हृदयमां आनंद उपजावतुं
हतुं, जेम थोडीक दूर रहेली मुक्तिनुं दर्शन पण मोक्षार्थीने आनंद उपजावे छे तेम.
अहो, भेटया....भेटया आजे सिद्धिधाम! सम्यग्दर्शन थाय ने निर्विकल्पध्यानमां
सिद्धपदनो पोताना अंतरमां ज भेटो थतां जे आनंद