ः ४ः आत्मधर्मः २४१
अशरीरी थवुं होय, कलेवरथी रहित थवुं होय–तेणे शरीरथी अत्यंत भिन्नतानो
निर्णय करीने तेना कर्तृत्वनी बुद्धि छोडवी जोईए. कर्तृत्वबुद्धि छूटया वगर मध्यस्थता
थाय नहि, ने मध्यस्थता वगर वीतरागता थाय नहि. मारुं स्वरूप पुद्गलनी क्रियानो
आधार नथी. मारुं स्वरूप तो मारा अनंत ज्ञानादिनो ज आधार छे ने शरीरादिनी
क्रियानो आधार पुद्गल ज छे. मारा वगर ज तेनां कार्यो स्वयं थाय छे. भगवाननो
आत्मा आजे शरीररहित अतीन्द्रिय थयो, तेम दरेक आत्मा अशरीरी चिदानंद स्वरूप
ज छे. अत्यारे पण आत्मा एवो ज छे. आचार्यदेव कहे छे के अरे जीवो! तमे आवा
आत्माने श्रद्धामां ल्यो....शरीर तो पुद्गलनुं ढींगलुं छे, ते तो आजे सुंदर होय ने काल
सडी जाय....एमां आत्मानो जराय अधिकार नथी. आत्मा ध्यान राखे तो सारूं रहे ने
आत्मा ध्यान न राखे तो बगडी जाय एवो संबंध जराय नथी. अहो! आत्मा
अशरीरी; ते शरीरनो आधार नथी. आवा आत्माने जाणता धर्मात्माने शरीरादिनो
पक्षपात नथी. अत्यंत मध्यस्थता छे. आत्मा शरीरनुं साधन नथी ने शरीर आत्माना
धर्मनुं साधन नथी. आत्मा कर्ता के साधन थया वगर ज शरीरादि पुद्गलो पोताना
कार्योरूपे स्वयमेव परिणमे छे. आवी भिन्नताना भान वगर अशरीरी सिद्धपदनी खरी
ओळखाय थाय नहीं. भगवान आत्मा अशरीरी छे, अतीन्द्रिय छे, तेना निर्णय वगर
अशरीरी पदनी साधकदशा थाय नहि. शरीर के इन्द्रियोने मददरूप माने, आत्मा तेना
कार्यनो कर्ता–कारण के आधार छे एम माने, तो तेणे अशरीरी आत्माने जाण्यो नथी,
ने अशरीरी सिद्धपदने पण ओळख्युं नथी. आखी जींदगी देहना कार्य पोताना मानीने
वीतावी, पण हवे समज्या त्यांथी सवार! एटले ज्यां देहादिथी भिन्न आत्मानी सम्यक्
ओळखाण थई त्यां भेदज्ञानरूपी सुप्रभात ऊग्युं. अरे जीवो! तमारो आत्मा आ
एकक्षेत्रे रहेला शरीरना कार्यमां पण कारणपणे नथी, तो पछी बीजानी शी वात!
देहमंदिरमां बिराजमान भगवान आत्मा अशरीरी छे, ते देहनो पण आधार नथी त्यां
बहारना पदार्थोनी शी वात! क्यांय तारुं कर्तापणुं नथी. माटे तुं तेनो पक्षपात छोडी दे.
आ वीतरागतानो मार्ग छे....आ सिद्धपदनो पंथ छे.
जुओ....आ वीतरागतानो मार्ग! आ परमात्माना पंथ, ने आ सिद्धपदने
साधवाना रस्ता. महावीर भगवान आवा मार्गे मोक्ष पाम्या ने आवो ज मार्ग तेमणे
विपुलाचल पर दिव्यध्वनि वडे बताव्यो हतो.
भाई, तारो अद्रश्य आत्मा, ते आ द्रश्यमान देहनुं कारण केम थाय? तारो
चिदानंद आत्मा ते आ जड पुद्गलनो पक्षपाती (कर्ता) केम थाय? माटे तेना
कारणपणानो पक्षपात छोडीने अशरीरी चिदानंद आत्मा तरफ परिणतिने अंतरमां वाळ.
आ दिवाळीना मंगळ दिवसोमां आखी वात समजीने परिणतिने अंतरमां
वाळवी ते खरी दिवाळी छे, तेमां सम्यग्ज्ञानना खरा दीवडा प्रगटे छे, ते मंगळ छे.