Atmadharma magazine - Ank 241
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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कारतकः २४९०ः ३ः
भगवान अशरीरीसिद्धपद आजे पाम्या तेथी आजे देहथी भिन्न अशरीरी
भावनी आ गाथा वंचाय छे.
संवत १९७८मां ज्यारे पहेलीवार समयसार हाथमां आव्युं ने जोयुं त्यां अंदर
एम थयुं के आ समयसार अशरीरीभाव बतावे छे. अहा! भगवान श्री
कुंदकुंदआचार्यदेवे श्री सीमंधर भगवान पासेथी तद्न अशरीरी चैतन्यभाव बताव्यो छे.
तद्न अशरीरी सिद्धपद माटे पहेलां तेनो निर्णय करवो जोईए.
धर्मी जाणे छे के हुं देहथी अत्यंत भिन्न चैतन्यमय छुं. मारो चैतन्यस्वभाव
आ देह–मन–वाणीनो कर्ता नथी, करावनार नथी अने अनुमोदनार नथी. अहो!
भगवान आजे अशरीरी थया. २४८९ वर्ष पहेलां थया ने आजे २४९०मुं वर्ष
बेठुं. पावापुरीथी समश्रेणीए सिद्धपदमां भगवान बिराजे छे. ज्यांथी देह छूटे तेनी
बराबर उपर, सीधी श्रेणीए लोकाग्रे भगवान बिराजे छे. सम्मेदशिखर उपरथी
अनंता भगवंतो मोक्ष पाम्या छे तेओ त्यां ज उपर सादिअनंतकाळ बिराजशे.
तेमना स्मरण माटे तीर्थस्थानो छे. अशरीरी पूर्ण ज्ञानघन आत्मा एक समयमां
स्वाभाविक ऊर्ध्वगतिथी लोकाग्रे पहोंचीने अनंतकाळ सुधी त्यां बिराजे छे. संसार
करतां सिद्धदशा अनंतगुणी छे. संसारदशा अनंतमा भागे हती–पण तेमां
एकस्थान न हतुं, चारगतिमां भ्रमण हतुं. ने आ सादि अनंत परमात्मसिद्धपद
प्रगटयुं....त्यां तेनुं स्थान पण अचळ थई गयुं. भाव पूरो थयो ने स्थान अचळ
थयुं. क्षेत्रथी ते चलायमान नथी, तेमज काळथी पण हवे कदी तेनो अंत नथी.
भावथी पण पूरुं छे. अहो! आवुं सिद्धपद शरीर साथे सर्वथा संबंध वगरनुं–
अशरीरी–पूर्णानंद भरेलुं, तेने भगवान आजे पाम्या.
पहेलां साधकदशामां भगवान शरीर, मन, वाणी आदिने भिन्नस्वरूपे समजता
हता. हुं तो चैतन्यपिंड छुं ने आ शरीर तो पुद्गलपिंड छे, ते परद्रव्य छे. हुं शरीर–
मन–वाणीने परद्रव्य समजु छुं–तेथी मने तेनो पक्षपात नथी. मारुं तेमां जराये
कर्तापणुं नथी. मारो तेनामां जराय अधिकार नथी. जेने पोतानुं कर्तव्य माने तेमां
पक्षपात थया विना रहे नहीं. पण देहादिमां मारुं कर्तव्य छे ज नहीं, एटले तेमां मारुं
जराय हितअहित नथी, तेथी हुं तेना प्रत्ये तद्न मध्यस्थ छुं. तद्न अकर्ता छुं. वचन
नीकळे, शरीर चाले तेनो आधार हुं नथी. ए अचेतननो आधार अचेतन छे.–आवा
भिन्न चैतन्यना भानपूर्वक भगवाने मोक्षदशा साधी. आवो निर्णय करे तेणे
भगवाननी ओळखाण करी कहेवाय. आवो निर्णय करवो ते मूळ मंगल महोत्सव छे.
जुओ, आ अशरीरी–सिद्धपदनो महोत्सव! आ खरी दिवाळी!