Atmadharma magazine - Ank 241
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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ः २ः आत्मधर्मः २४१
देहातीत सिद्धपदनी प्राप्तिनो उपाय
(प्रवचनसार गा १६० उपरना प्रवचनमांथी वीर सं. २४८९ आसो वद अमास)
भगवान महावीर परमात्मा पावापुरीथी देहातीत सिद्धदशाने पाम्या...एवी
देहातीत दशाने पामतां पहेलां भगवाने केवो निर्णय कर्यो हतो? ते अहीं बताव्युं छे.
मारो आत्मा देहातीत छे, देह साथे तेने कांई ज संबंध नथी–एवी अंतरंग ओळखाण
करे त्यारे ज साधकपणुं खीले ने त्यारे ज देहातीत दशाने पामेला भगवाननी खरी
ओळखाण थाय.
भगवान महावीर आजे अशरीरी सिद्धपदने पाम्या....पूर्णानंद सिद्धपद
आजे पाम्या....इन्द्रोए मोक्षकल्याणक ऊजव्यो....‘प्रमोद’–मोद एटले आनंद,
तेनी पूर्णतारूप सिद्धपद–मोक्षपद आजे भगवान पाम्या....शरीरनो संयोग हतो
ते पण आजे छूटी गयो, उदयभाव सर्वथा छूटी गयो ने सिद्धपदरूप पूर्ण
क्षायकभावने पाम्या. ते पहेलां साधकदशामां केवो निर्णय हतो? ते प्रवचनसार
गाथा १६०मां कहे छे–
‘हुं देह नहि, वाणी न, मन नहि, तेमनुं कारण नहि;
कर्ता न, कारयिता न, अनुमंता हुं कर्तानो नहि.’ (१६०)