Atmadharma magazine - Ank 241
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 12 of 42

background image
कारतकः २४९०ः ९ः
पण मूळ वस्तुने जो अतीन्द्रिय स्वसंवेदनथी पकडे तो तेमां बधाय शास्त्रोनो सार
आवी जाय छे. निरपेक्ष ज्ञानवाळो आत्मा छे, तेने इन्द्रियोनी अपेक्षा नथी, मननी
अपेक्षा नथी, रागनी अपेक्षा नथी. प्रभो! तारुं ज्ञान ते परनी ओशीयाळवाळुं होय?
शुं तारो आत्मा पंगु छे के तेना ज्ञानने परनी ओशीयाळ होय? नहि;
स्वाधीनज्ञानस्वभाववाळो आत्मा छे, तेना ज्ञानने परनी ओशीयाळ नथी; परनुं
अवलंबन ते शरम छे, तेम ज्ञानमूर्ति आत्माने ज्ञान करवा माटे जडनो टेको लेवो पडे
ते शरम छे. स्वभावनुं धाम छे तेने परावलंबननुं काम नथी. चैतन्यधाम आत्मा, तेमां
वळी परनुं अवलंबन शुं? जे पोते ज ज्ञान छे ते अतीन्द्रियपणे जाणवाना
सामर्थ्यवाळो छे. आवो अतीन्द्रियज्ञानस्वभावी आत्मा छे. आवा आत्माने लक्षमां ल्ये
तो बहारनां जाणपणाना गर्व ऊडी जाय. बहारनो महिमा छूटे त्यारे आ
अतीन्द्रियवस्तु हाथमां आवशे. भाई, आत्मारूप थईने आत्माने जो. इन्द्रियरूप थईने
आत्मा नथी जोवातो. एकवार इन्द्रियातीत थईने स्वसन्मुख था....एटले
अतीन्द्रियज्ञानरूप था....अतीन्द्रियज्ञानरूप थईने आत्मा जणाय छे. “हुं इन्द्रिय वडे
जाणनार छुं” एम माने तो आत्मानुं परमार्थस्वरूप न पकडाय. ‘अतीन्द्रियज्ञानवडे हुं
जाणनार छुं’ एम ओळखे तो परमार्थस्वरूप आत्मा जणाय.
जंगलमां वसता ने आत्माना आनंदमां झूलता संतोए स्वानुभवमां भगवान
साथे वातुं करतां करतां आ वात लखी छे. अहो, आ पंचमकाळे आवा मुनिओ
पाकया!! अत्यारे तो एनां दर्शन पण दुर्लभ छे. अहो, ए संत–महंतना चरणमां
भावनमस्कार छे. वाह! एनी अंतर दशा!! पंचपरमेष्ठीमां जेनुं स्थान छे.
कुंदकुंदभगवान आ भरतक्षेत्रमां विचरता हशे–ए तो जाणे चालता सिद्ध! जेनां
दर्शनथी मोक्षतत्त्व प्रतीतमां आवी जाय. तेमणे कहेलो आ एकज रस्तो संसारथी बहार
नीकळवानो छे, बीजो रस्तो नथी.
सीमंधरभगवान सर्वज्ञपदे विदेहक्षेत्रमां बिराजे छे....त्रणकाळनी समयसमयनी वात
तेमना ज्ञानमां वर्ती रही छे....भरतक्षेत्रमां आम बनी रह्युं छे, आम बनशे–ए बधुं तेमना
ज्ञानमां साक्षात् वर्ती रह्युं छे, पण तेमने कोई विकल्प नथी; तेओ तो निजानंदमां लीन छे.
आत्मा तो आनंदनुं मंदिर छे, अतीन्द्रिय ज्ञान ने अतीन्द्रियआनंदनुं धाम आत्मा छे.
आवो अतीन्द्रियआत्मा जेम पोते इन्द्रियथी जाणवाना स्वभाववाळो नथी, तेम
ते इन्द्रियज्ञानवडे जणाय तेवो पण नथी. अतीन्द्रिय आत्मा तो अतीन्द्रियज्ञान वडे ज
जणाय एवो छे. आवो आत्मा ते ज आदरणीय छे. वच्चे ते वखते व्यवहारज्ञान हो
भले, पण ते कांई आदरणीय नथी, आदरणीय तो एक परमार्थस्वभाव ज छे.