Atmadharma magazine - Ank 241
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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कारतकः २४९०ः ११ः
इन्द्रियोथी ने शरीरथी अत्यंत भिन्नपणुं खरेखर क्यारे जाण्युं कहेवाय!–के
उपयोगने इन्द्रियोथी पाछो वाळीने अतीन्द्रियस्वभावमां लई जाय त्यारे. पण ‘हुं
इन्द्रियोथी जाणनार छुं’ एम जे माने तेणे खरेखर आत्माने इन्द्रियोथी जुदो जाण्यो ज
नथी. देहादिथी अत्यंत भिन्न ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानी प्राप्ति ज्यांसुधी न थाय
त्यांसुधी जीवने सुख–शांतिनी प्राप्ति न थाय. आत्मप्राप्ति वगर भले मोटो धनवान हो
के निर्धन हो, राजा हो के त्यागी हो, ते बधाय जीवो एकला दुःखी ज छे.
आत्मा केवो छे?–ज्ञायक छे, जाणनार छे; ने इन्द्रियो तो जड छे, ते जड
इन्द्रियोवडे ज्ञायकतत्त्वनी प्राप्ति केम थाय?–न ज थाय. ज्ञायक पोते ज जाणनार छे. ते
जाणनारो कांई इन्द्रियो वडे जाणतो नथी. तेना मति–श्रुतज्ञान पण
अतीन्द्रियस्वभावना आश्रये ज काम करे छे. चैतन्यनी जात चैतन्यना अवलंबने
प्रगटे, पण जडना अवलंबने चैतन्यजात प्रगटे नहीं.
कुंदकुंदाचार्यदेव आदेश करीने कहे छे के ‘जाण अलिंगग्गहणं’–एटले हे शिष्य!
आवा अतीन्द्रिय ज्ञानस्वरूपी आत्माने तुं जाण!–आचार्यदेवे आत्माने जाणवानो
आदेश कर्यो ते एम बतावे छे के ते आदेश झीलनारा पण छे. चैतन्यस्वभाव तरफ
झूकाव केम करवो, तेनी प्राप्ति करीने जन्म–मरणनो फेरो केम टाळवो, तेनी रीत
आचार्यदेव बतावे छे.
चैतन्यने चूकीने एकला परना अवलंबने जे ज्ञान जाणे ते खरेखर आत्मा
नथी, तेणे आत्मा साथे एकता करी नथी. इन्द्रियो साथेनो संबंध तोडीने, अंतर्मुख
थईने आत्मा साथे एकता करीने जे जाणे एवुं अतीन्द्रियज्ञान ते ज खरेखर
आत्मा छे.
अहा, मारो आत्मा अतीन्द्रियज्ञानस्वरूप छे. आम जे खरेखर जाणे तेने
इन्द्रियज्ञानना बहारना जाणपणाना के शास्त्रनी धारणाना अभिमान ऊडी जाय.
इन्द्रियज्ञान के शास्त्रना जाणपणामां ज महत्ता मानीने त्यां जे अटकी जाय ते
अतीन्द्रियज्ञानस्वरूपी आत्माने क्यांथी जाणशे? तेणे तो इन्द्रियज्ञानने ज आत्मा
मानी लीधो छे. चैतन्यनी ‘अगाधगति’ छे, एटले पुण्य–पापथी के मन इन्द्रियोथी
पार एवुं अगाध अतीन्द्रियस्वरूप छे. शुभाशुभनी गति तो चैतन्यथी बहार छे अने
तेनुं फळ चार गति छे. अंतरना चैतन्यनी गति एनाथी न्यारी छे. चैतन्यथी बहार
नीकळीने जे कोई भाव थाय तेनाथी कदाच पुण्य बंधाय, तोपण तेनाथी जन्ममरणनो
फेरो मळे, जन्ममरणनो फेरो टळे नहि.