द्रव्य त्रिकाळ मंगळरूप छे. जे जीव केवळज्ञान पामनार छे तेनुं द्रव्य त्रिकाळ मंगळरूप छे.
मंगळरूप छे, ने भगवानना केवळज्ञानादिरूप भाव ते पण मंगळरूप छे,–आ रीते
भगवान महावीर परमात्मा द्रव्य–क्षेत्र–काळ ने भावथी मंगळरूप छे. भगवान मोक्ष
भगवानना भक्तो कहे छे के हे नाथ! आपे चैतन्यस्वभावमां अंतर्मुख थईने
आत्मानी मुक्तदशाने साधी ने एवो ज आत्मा वाणीद्वारा अमने दर्शाव्यो. एवा
मंगळक्षेत्र छे. श्रद्धा–ज्ञाननो जे भाव छे ते मंगळभाव छे, ने ते आत्मा पोते मंगळरूप
छे. भगवाननो मोक्षकल्याणक उजव्या पछी इन्द्रो अने देवो नंदीश्वरद्वीपे जाय छे अने
त्यां आठ दिवस सुधी उत्सव करे छे.
वात शीलपाहुडनी गाथामां कहे छे–
होहदि परिणिव्वाणं जीवाणं चरित्तसुद्धाणं ।। ११।।
परिनिर्वाण थाय छे. निर्वाण ए कोई बहारनी चीज नथी पण आत्मानी पर्याय परम
शुद्ध थई गई ने विकारथी छूटी गई तेनुं नाम ज निर्वाण छे.
शासन चाले छे. भगवान सम्यग्दर्शनपूर्वक दर्शन–ज्ञान–चारित्र अने तपथी
परिनिर्वाण पाम्या अने एवो ज उपदेश आपी रह्या छे. भगवान पोताना परम
दशानो आजनो मंगळ दिवस छे ने आ निर्वाणना उपायनी गाथा पण मंगळ छे. आ
रीते दिवाळीमां मांगळिक छे.