अनुभवने उग्र करीने स्वादमां ल्ये छे, एवा पुरुष नियमथी चोक्कस ध्रुवपणे निर्वाणने
पामे छे; तेमने सुमार्गशाळी कह्या छे.
छे, ने एवा सम्यक्शीलवाळो जीव जरूर निर्वाण पामे छे. चैतन्यध्येयने चूकीने जेणे
परने ध्येय बनाव्युं छे ते जीवने शीलनी रक्षा नथी, शरीरथी भले ब्रह्मचर्य पाळतो होय
पण जो अंदरमां रागनी रुचि छे तो तेने शीलनी रक्षा नथी, तेने दर्शनशुद्धि नथी.
चैतन्य स्वभावनी रुचि जेणे प्रगट करी छे ने रागनी रुचि छोडी छे तेने चैतन्यध्येये
बाह्यविषयोनुं ध्येय छूटी जाय छे; आवुं शील ते निर्वाणमार्गमां प्रधान छे. आ बे
गाथामां तो दर्शनशुद्धि उपरांत चारित्रनी वात करीने साक्षात् निर्वाणमार्ग कह्यो.
यथार्थमार्ग प्रतिपादन करे छे, तो ते ज्ञानीने मार्गनी प्राप्ति कहेवामां आवे छे.
सम्यक्मार्गनुं पोताने भान छे ने सम्यक्मार्गनुं बराबर प्रतिपादन करे छे पण हजी
विषयथी अत्यंत विरक्तिरूप मुनिदशा वगेरे नथी, अस्थिरता छे, तोपण ते ज्ञानी
धर्मात्मा मोक्षमार्गना साधक छे. तेने इष्टमार्गनी प्राप्ति छे अने ते यथार्थ मार्ग
बतावनारा छे तेथी तेना उपदेशथी बीजाने पण सम्यक्मार्गनी प्राप्ति थाय छे. पण जे
जीव विषयोथी–रागथी लाभ मनावे तेने तो सम्यक्मार्गनी श्रद्धा ज नथी, ते तो
उन्मार्गे छे, अने उन्मार्गनो बतावनार छे. धर्मीने राग होय पण तेने ते बंधनुं ज
कारण जाणे छे; तेथी राग होवा छतां तेनी श्रद्धामां विपरीतता नथी, तेने मार्गनी प्राप्ति
छे ने तेना उपयोगथी बीजा जीवो पण मार्गनी प्राप्ति करी शकशे.
श्रद्धा ज्ञान अने तेमां लीनतारूप वीतरागता ते ज मोक्षनो मार्ग छे. मोक्षार्थीए एवी
वीतरागता ज कर्तव्य छे, क्यांय जरापण राग कर्तव्य नथी. रागनो एक कणियो पण
मोक्षने रोकनार छे, ते मोक्षनुं साधन केम थाय? आम ज्ञानीने श्रद्धा छे; अहा, ज्यां
पुण्यभावने पण छोडवा जेवो माने छे त्यां ज्ञानी पापमां तो स्वच्छंदे