Atmadharma magazine - Ank 241
(Year 21 - Vir Nirvana Samvat 2490, A.D. 1964)
(Devanagari transliteration).

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कारतकः २४९०ः ३३ः
कमळ संयमभावनाथी खीली ऊठे छे. तीर्थंकर–मुनिवरोना प्रतापे सम्मेदशिखरजी पहाड
तो शोभित ने पूजित छे, परंतु तेना उपरनुं एकेक वृक्ष, तेनां पुष्प ने पांदडां पण केवा
सुंदर शोभी रह्या छे! अने अहीं विचरनारा संतोना हृदयमां खीलेली
रत्नत्रयपरिणतिनी तो शी वात! अहो, गीच वनमां गुप्तपणे रत्नत्रयना अतीन्द्रिय
आनंदनो स्वाद लेनारा ए सन्तो!
अहा, आ यात्रासंघमां गुरुदेवना भावोनी शी वात! गुरुदेव अपूर्व भावे
सिद्धिधामने नीहाळी रह्या छे ने यात्रिकोमां कालीघेली भक्ति अने उमंग देखीने पोते
पण प्रसन्न थाय छे; वारंवार कहे छे के आपणे तो पहेलीवहेली यात्रा छे. सिद्धिधामनुं
अने सिद्धपदसाधकसंतोनुं आ मिलन कोइ अनेरुं प्रेरणादायी छे. जेम सिद्धस्वरूपना
साक्षात्कारथी साधक परम आनंदित थाय तेम अहीं सिद्धिधामना साक्षात्कारथी
साधकोनुं हृदय परम आह्लादित थाय छे.
जेम जीवननी कोइ विरलक्षणे थयेलुं चैतन्यवेदन धर्मात्माने जीवनमां कदी
भूलातुं नथी ने ज्यारे ज्यारे याद करे त्यारे त्यारे तेने प्रमोदित करे छे, तेम जीवनमां
प्राप्त थयेल आ मंगलयात्रानो विरल प्रसंग मुमुक्षुने जीवनमां कदी भूलाशे नहि, ने
ज्यारे ज्यारे याद करे त्यारे त्यारे तेने प्रमोदित करशे.
अहीं दुनिया देखाती नथी, संसार याद आवतो नथी; बस, हृदयमां एक वहाला
सिद्ध भगवान ज बिराजे छे,–क्यारे प्रभुजीने भेटीए! क्यारे सिद्ध थइए! संतोनी
आराधनाना आ धाममां आराधक संतोनी साथे विचरतां आराधना माटेनी
भावनाओ सेवाय छे. खरेखर, आराधना माटे जीवन वीते ए ज खरुं जीवन छे.
ज्ञानीओ साथेनी तीर्थयात्रानी बलिहारी छे. एक तो ज्ञानीनो आत्मा स्वयं
तीर्थ छे, ने वळी तेमनी साथे भारतना सर्वोत्कृष्ट तीर्थधामनी यात्रा थाय छे,–एवी आ
मंगळ तीर्थयात्राना आनंदनी शी वात!!
‘सम्मेदशिखर!’ जेनां दर्शन करतां अनंत सिद्धभगवंतोनुं स्मरण थाय....ने
सिद्धपदने साधनारा तीर्थंकरो तथा संतोना समूह स्मृतिसमक्ष तरवरतो थको आपणने
मोक्षमार्गनी प्रेरणा जगाडे.....एवा आ सिद्धिधामनी यात्रा ते मुमुक्षुजीवननो एक
आनंदप्रसंग छे. रत्नत्रयतीर्थना प्रवर्तक तीर्थंकरो अने तेने साधनारा सन्तो आ
भूमिमां विचर्या; ए तीर्थस्वरूप सन्तोना पवित्र चरणना प्रतापे आ भूमिनो
रजकणेरजकण पावनतीर्थ तरीके जगतमां पूज्य बन्यो. आवी भारतनी आ शाश्वत
तीर्थभूमिनी मंगलयात्रा करवा माटे तलसी रहेला भक्तोना हृदय आजे तृप्त थता हता.