सिद्धिधाम तरफ जवा माटे पहाड चडतां चडतां यात्रिकोने थाक नथी लागतो पण उलटो
उत्साह वधतो जाय छे. लगभग साडा पांच वागे थोडो थोडो प्रकाश थयो. हजु पहेली
टूंक आववाने थोडी वार हती, त्यां दूरदूर एक टूंकना दर्शन थया. एने जोतां ज गुरुदेव
कहे–जुओ, ए....टूंक देखाय! टूंकना दर्शन थतां यात्रिको हर्षोल्लासमां आवी गया. जेम
चंद्रने देखीने दरियो उल्लसे तेम तीर्थधामनी टूंकना दर्शनथी तेने भेटवा भक्तहृदयमां
हर्षनो दरियो उल्लसवा लाग्यो. दूरदूरथी देखाती ए सौथी ऊंची ‘सुवर्णभद्र’ टूंक हती.
पारसनाथनी ए सौथी ऊंची टूंकना दर्शन थतां सौए लळीलळीने आखा शिखरजी
तीर्थने भक्तिथी वंदन कर्या अने जयघोषपूर्वक पहेली टूंके पहोंचवा झडपथी आरोहण कर्युं.
जेम दर्शनसहितना पुरुषार्थमां जुदुं ज जोर होय छे तेम टूंकना दर्शन पछी यात्रिकोना
आरोहणमां जुदुं ज जोर आव्युं....ने थोडी ज वारमां पहेली टूंके आवी पहोंच्या.
एने उखेडवा मांगे तो ते उखडी शके छे.”