मागशर–पोषः २४९०ः १९ः
हे श्री दिगंबर मुमुक्षुसंघना नायक!
आ कुंदकुंदाचार्य पहाड पर हरसाल हजारो लोको आवीने दर्शन करी जाय
छे. अने वळी आपनुं आगमन थतां इतिहासांकित आ पुनित पहाड वधारे
प्रशंसाप्रात्र बनी गयो छे. आप अने आपना संघना पधारवानी यादीस्वरूपे आ
पहाडनी पासे एक जैन गुरुकुळनी स्थापना करीने, तेना द्वारा वर्तमान
पुरातत्त्वने प्राप्त करवा तथा सत्यज्ञान अने सत्यधर्मनो मार्ग देखाडवा अमे
प्रार्थना करीए छीए.
पोन्नूर आपना प्रेमानुरागी
१४–३–१९प९ श्री कुंदकुंद पहाड संबंधी पोन्नूर जैन समुदाय
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धर्मात्मानुं उत्कृष्ट पराक्रम आनंद–आश्चर्य उपजावे छे
“जेने कांइ प्रिय नथी, जेने कांइ अप्रिय नथी, जेने कोइ शत्रु नथी, जेने
कोइ मित्र नथी, जेने मान, अपमान, लाभ, अलाभ, हर्ष, शोक, जन्म, मृत्यु
आदि द्वंद्वनो अभाव थइ जे शुद्ध चैतन्यस्वरूपने विषे स्थिति पाम्या छे, पामे छे
अने पामशे तेमनुं अति उत्कृष्ट पराक्रम सानंदाश्चर्य उपजावे छे.”
श्रीमद् राजचंद्रः (८३३)
जिज्ञासुने ज्ञाननी शिखामण
हुं धर्म पाम्यो नथी, हुं धर्म केम पामीश?–ए आदि खेद नहीं करतां
वीतराग पुरुषोनो धर्म जे देहादि संबंधी हर्ष विषादवृत्ति दूर करी, आत्मा असंग
शुद्ध चैतन्यस्वरूप छे–एवी वृत्तिनो निश्चय, अने आश्रय ग्रहण करी, ते ज
वृत्तिनुं बळ राखवुं; अने मंदवृत्ति थाय त्यां वीतराग पुरुषोनी दशानुं स्मरण
करवुं. ते अद्भुत चरित्र पर द्रष्टि प्रेरीने वृत्तिने अप्रमत्त करवी. ए सुगम अने
सर्वोत्कृष्ट उपकारक तथा कल्याणस्वरूप छे.
श्रीमद् राजचन्द्रः (८३४)